प्रस्तुत है अवधारक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 25 जून 2022
का हमें शक्तिसंपन्न राष्ट्रभक्त बनाने हेतु सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
शक्ति की कल्पना के साथ उसकी आराधना भारतीय दर्शन की बहुत प्राचीन परम्परा है हमारे पौराणिक वैदिक ग्रंथों में यह मुख्यतः मातृ रूप (देवी महान )में है
हरिवंश पुराण मार्कण्डेय पुराण आदि में इसका पल्लवन बहुत हुआ है
देवी को उपनिषदों का ब्रह्म कहा गया है उपनिषदों में यह एकमात्र सत्ता वर्णित है
दूसरे देव इस देवी की अभिव्यक्तियां हैं
शक्ति की उपासना बहुत प्राचीन है
पूजा भाव की होती है भाषा की नहीं इसके लिये आचार्य जी ने संपूर्ण भारत वर्ष में कथावाचक के रूप में ख्याति अर्जित कर चुके डोंगरेजी महाराज का एक प्रसंग बताया
भक्ति ही शक्ति है शाक्त साहित्य में इसका बहुत महत्त्व है मूल रूप से रामकृष्ण परमहंस भी शाक्त अर्थात् शक्ति के उपासक थे
सृष्टि का सृजन और प्रलय शक्ति ही करती है
शरीर में शक्ति अत्यावश्यक है अन्यथा अभिव्यक्ति अनुष्ठान संधान और भक्ति संभव नहीं
शक्ति के संचय और शक्ति की साधना के लिये हमें बहुत से उपाय बताये गये हैं
हम देखते हैं कि विष्णु के साथ लक्ष्मी शिव के साथ पार्वती राम के साथ सीता हैं
शक्ति और भक्ति की परम्परा फलीभूत होती आई है
हिन्दू नहीं बचेंगे ऐसी निराशावादी सोच नहीं रखनी चाहिये अन्यथा शक्ति का क्षय ही होगा
शक्तिहीन विचारकों का संगठन किस काम का
जब लगता है कि ज्योति बुझ रही है तो ऐसे स्वर प्रकट होते हैं
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ।।
(कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, मंत्र १४)
आत्मस्थ होने का प्रयास करें
सहानुभूति का मरहम भी बहुत विशेष महत्त्व का है
भारतीय संस्कृति की तात्त्विक विशेषता की अनुभूति अध्ययन उपासना हमें करनी ही चाहिये ताकि विषम परिस्थितियों में भी हमें मार्ग दिखाई देने लगे
पूज्य गुरु जी जो रामकृष्ण परमहंस की परम्परा के सिद्ध योगी थे का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने कहा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसी कारण अध्यात्म के साथ व्यवहारिक सिद्धान्तों के प्रयोगों से क्षमतासंपन्न बन सका
हम किसी की विशेषता को ग्रहण करें दूसरे के दोषों का दर्शन हमें कुण्ठित करेगा
कल के सरौंहां के कार्यक्रम में आप सभी सादर आमन्त्रित हैं