27.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 27 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है धैर्य -पुरण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 27 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w



कल हम लोगों के गांव सरौंहां में आम्र रसास्वादन समारोह अत्यन्त उत्साह के साथ संपन्न हुआ


आचार्य जी, भाईसाहब,सर्वश्री सुरेश गुप्त जी 75, ओम प्रकाश मोटवानी जी 76, प्रकाश शर्मा जी 76, अभय गुप्त जी 77, अरविन्द तिवारी जी 78, संजय श्रीवास्तव जी 78, वीरेन्द्र त्रिपाठी जी 82, डा मलय जी 82, प्रवीण अग्रवाल 83,  कृष्ण कुमार तिवारी जी 86, चन्द्रमणि जी 86, संजीव द्विवेदी जी 87, मनीष कृष्णा जी 88, तरुण सक्सेना जी 88, प्रदीप वाजपेयी जी 89,पवन मिश्र जी 96, निर्भय जी 98, शिशिर मिश्र जी 2006, शरद कश्यप जी 2006, अक्षय जी 2008, मेधा त्रिपाठी जी 2019, मुकेश गुप्त जी, सुनील जी आदि ने अत्यन्त उत्साह के साथ कार्यक्रम में भाग लिया


गायत्री तिवारी जी शोभना सक्सेना जी, सीमा कृष्णा जी, चि अभिषेक सिंह (कक्षा 11 दीनदयाल विद्यालय ) और कुछ बच्चे भी उपस्थित रहे


अपनों का साथ मिलने पर आनन्द सहस्रगुणित हो जाता है पीड़ाएं दूर हो जाती हैं शैथिल्य पराक्रम में परिवर्तित हो जाता है


अपनेपन  का विस्तार परमात्मा की कृपा है पूर्वजन्म की उपलब्धियों के कारण है और इस संसार में आने के हेतु की फलश्रुति है

जीवन भी एक निबन्ध है


इस निबन्ध की रचना परमात्मा करता है और जीवात्मा को यह निबंध सौंप देता है


कौरवों और पांडवों के जीवन के निबन्ध भी लिखे जा रहे थे दोनों अपनी अपनी त्वरा में थे विषम परिस्थितियों के आगमन के कारण तत्त्व के रूप में गीता प्रकट हो गई


जहां भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि सहज कर्म करते जायें



सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।


....


ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति।


समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम्।।18.54।।


हमें सहज कर्म करते रहने चाहिये अकेले व्यक्ति को अपनेपन का एहसास दिलायें

यही सहजता सम विषम परिस्थितियों में भी बने रहे तो क्या कहना



हम लोग अपने संगठन को विकसित करने के इच्छुक हैं ताकि अपने पद प्रतिष्ठा को पचाते हुए अपने कर्तव्य का बोध करते हुए अपनेपन का जीवन -निबंध लिखा जाये

सबके व्यक्तिगत रूप से निबंध चलते हुए महानिबन्ध लिखा जाये



आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं


समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्।


तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे


स शान्तिमाप्नोति न कामकामी।।2.70।।



जैसे सारी नदियों का जल  समुद्रमें आकर मिलता है किन्तु समुद्र अचल  रहता है ऐसे ही सम्पूर्ण भोग-पदार्थ जिस संयमी मनुष्य को विकार उत्पन्न किये बिना ही प्राप्त होते हैं, वही मनुष्य परमशान्ति को प्राप्त होता है


भगवान् राम भी समुद्र की तरह गम्भीर हैं और ऐसे राम के हम उपासक हैं

ऐसे राष्ट्र के उपासक है.            हमारा ध्येय -वाक्य है 

" प्रचण्ड तेजोमय शारीरिक बल, प्रबल आत्मविश्वास युक्त बौद्धिक क्षमता एवं निस्सीम भाव सम्पन्ना मनः शक्ति का अर्जन कर अपने जीवन को निःस्पृह भाव से भारत माता के चरणों में अर्पित करना ही हमारा परम साध्य है l "

इसके अतिरिक्त आचार्य आनन्द जी वाला चित्रकूट प्रसंग क्या है जानने के लिये सुनें