4.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 4 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लँगूर।

बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर॥




अगणित–उर–शोणित से सिंचित

इस सिंहासन का स्वामी है।

भूपालों का भूपाल अभय

राणा–पथ का तू गामी है।।


प्रस्तुत है मार्गशोधक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 4 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w



मोहन भागवत जी के बयान कि हर मस्जिद में शिवलिंग की तलाश करना उचित नहीं

पर आचार्य जी कहते हैं



असम्भवं हेममृगस्य जन्मः तथापि रामो लुलुभे मृगाय |

प्रायः समापन्न विपत्तिकाले धियोSपि पुंसां मलिना भवन्ति ||


प्रायः ऐसा देखा गया है कि संकट के समय लोगों की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है | इसी कारण भगवान् राम यह जानते हुए भी कि स्वर्ण मृग का अस्तित्व असम्भव है, वे शिकार करने का लोभ  कर  बैठे |

प्राचीन मनीषियों के नये संस्करण साहित्यकारों के इस तरह के सूत्रवाक्य बहुत तात्त्विक और महत्त्वपूर्ण होते हैं


ऋषि मनीषी साधक सिद्धपुरुष हो जाता है ऐसी परम्परा पर  हमारे देश के जनमानस को विश्वास है


जीवनमरण का सवाल आने पर जो समर्पण के लिये उद्यत हो जाते हैं देश उनका होता है

 उन लोगों को भारत माता से प्रेम नहीं है जो कहते तो हैं कि उन्हें इस देश से प्यार है इसलिये वहां नहीं गये लेकिन मन में और ही कुछ चलता रहता है


लगाव क्या होता है इस पर आचार्य जी ने एक बहुत मर्मस्पर्शी कहानी सुनाई


ऐसा ही सच्चे सपूतों को भारत मां से लगाव होता है



मनभर लोहे का कवच पहन¸

कर एकलिंग को नमस्कार।

चल पड़ा वीर¸ चल पड़ी साथ

जो कुछ सेना थी लघु–अपार॥5॥


घन–घन–घन–घन–घन गरज उठे

रण–वाद्य सूरमा के आगे।

जागे पुश्तैनी साहस–बल

वीरत्व वीर–उर के जागे॥6॥


सैनिक राणा के रण जागे

राणा प्रताप के प्रण जागे।

जौहर के पावन क्षण जागे

मेवाड़–देश के व्रण जागे॥7॥


जागे शिशोदिया के सपूत

बापा के वीर–बबर जागे।

बरछे जागे¸ भाले जागे¸

खन–खन तलवार तबर जागे॥8॥


हमारा देश केन्द्रीकृत व्यवस्था में विश्वास नहीं करता था राजा के अतिरिक्त ऋषि मार्गदर्शक भी होते थे राजा नियन्त्रक नहीं होता था यद्यपि व्यवस्था तो करता था

हमारी शिक्षा प्रणाली ने हमें नौकरी के प्रति लालायित कर दिया दूसरों की अधीनता स्वीकारना l


कल कानपुर में पुलिस ने अपने काम को निडर होकर अंजाम दिया क्योंकि उसे अपनी नौकरी जाने का भय नहीं था


धर्माधारित शिक्षा और धर्माधारित राजनीति समाज को छिन्नभिन्न होने से बचाती है


कानपुर की घटना हमें झकझोरने के लिये पर्याप्त है दुष्ट लोग भय से नियन्त्रण में आते हैं  हमें सजग रहने की भी आवश्यकता है शक्ति शौर्य की उपासना लगातार होनी चाहिये


संगठित समाज को कोई पराभूत नहीं कर सकता


राजनॆताओं की कमियों के कारण भौगोलिक क्षरण तो हुआ लेकिन समूल नाश नहीं हुआ क्योंकि कोई न कोई  संस्था  खड़ी होती रही है


जीवनशैली बदलें परस्पर विश्वास में वृद्धि करें

सिद्धान्तों का व्यवहार में परिवर्तन आवश्यक है


हम लोग समाज की सेवा में इन्हीं सिद्धान्तों के आधार पर रत हो जायें


चढ़ चेतक पर तलवार उठा,

रखता था भूतल पानी को।

राणा प्रताप सिर काट काट,

करता था सफल जवानी को॥


कलकल बहती थी रणगंगा,

अरिदल को डूब नहाने को।

तलवार वीर की नाव बनी,

चटपट उस पार लगाने को॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रकाश शर्मा जी भैया गणेश भैया मनीष कृष्णा का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें