6.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 6 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 न तोयपूत देहस्य स्नानमित्यमिधीयते। स स्नातो यस्य वै पुँसः सुविष्शुद्धं मनामतम्।


पानी से शरीर धोना ही स्नान नहीं है यदि हम अन्तःशुद्धि भी कर लें तो वह स्नान है



प्रस्तुत है जारूथ्य आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 6 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w


जीवन की यात्रा में सुख और दुःख आते रहते हैं इसी अवस्थाद्वय के कारण कभी हम उल्लसित रहते हैं और कभी ऊबते हैं प्रसन्न जीवन का सीधा और सरल सूत्र है कि हम वर्तमान में जीना सीखें

वर्तमान में न रहने पर अनुभूति दूर हो जाती है भूतकाल में जाने पर बहुत से ऐसे विचार आते हैं जो परेशान करते हैं भविष्यकाल में जाने पर उसमें संभावित बाधाओं के विचार से भी परेशान होते हैं


इन परेशानियों से दूर होने के लिये जिस मार्ग का अनुसरण महापुरुषों ने किया है उसे हम अपनायें

वेदा विभिन्नाः स्मृतयो विभिन्ना नासौ मुनिर्यस्य मतं न भिन्नम् । धर्म्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गतः स पन्थाः ॥


हमारे मन का चांचल्य एक विचित्र रूप धारण कर लेता है चंचलता के उत्तर स्वयं देने लगता है इन भावों और विचारों में गहराई से प्रवेश करने पर


इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।


मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः।।3.42।।


एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।


जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्।।3.43।।



 बुद्धि से परे आत्मा को जानकर बुद्धि के द्वारा मन को वश में करके, हे महाबाहो ! तुम इस  कामरूप शत्रु को मारो।।



आत्म और अनात्म भाव अध्यात्म का मूल विषय है इसके अन्दर हमारा यदि चंचु प्रवेश ही है तो भी जितनी देर हम इन भावों को समझते हैं उतनी देर आनन्दार्णव में तैरते रहते हैं

ज्ञान का वर्धन तो नाममात्र का हो सकता है लेकिन इन सदाचार संप्रेषणों का मूल उद्देश्य है हमें आत्मबोध की अनुभूति होवे


आनन्दमय स्थिति तब आती है जब हम शरीर से निकलकर आत्म तक पहुंचते हैं और आत्म में पहुंचकर उसकी अनुभूति भी करना आवश्यक है


कल के कार्यक्रम में हम सब लोगों को आनन्द की अनुभूति हुई

अध्यात्म से संबन्धित प्रश्न और उत्तर  के कार्यक्रम भी हमें करने चाहिये


सम्राट पृथ्वीराज फिल्म में हिन्दुत्व का बोध कराया गया हिन्दुत्व शौर्य शक्ति से संयुत रहे इसमें रामत्व प्रवेश करे

रामत्व धोखा नहीं खाता खाता भी है तो आंशिक रूप से और उसका निवारण भी कर लेता है


आचार्य जी  अपने स्वाध्याय से हमें उत्साहित करते हैं हम भी नवोदित पीढ़ी को उत्साहित करें

आचार्य जी ने मास्क के लिये क्या बताया खुलापन कहां आये आदि जानने के लिये

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