निर्बल बकरों से बाघ लड़े¸
भिड़ गये सिंह मृग–छौनों से।
घोड़े गिर पड़े गिरे हाथी¸
पैदल बिछ गये बिछौनों से॥1॥.......
होती थी भीषण मार–काट¸
अतिशय रण से छाया था भय।
था हार–जीत का पता नहीं¸
क्षण इधर विजय क्षण उधर विजय॥8॥....
प्रस्तुत है आढ्यम्भभावुक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 7 जून 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
हल्दीघाटी द्वादश सर्ग की उपर्युक्त पंक्तियों में रणभूमि के युद्ध का वर्णन है लेकिन एक वैचारिक युद्ध भी होता है उस युद्ध में चिन्तन महत्त्वपूर्ण है यहां प्रतिक्रिया देने के पूर्व हमें अच्छी तरह से विचार भी करना चाहिये हमारे अन्दर इतनी शक्ति भी होनी चाहिये कि दूसरे की बात भी समझें
हमें अपने चिन्तन का रुख व्यावहारिक पक्ष की ओर भी करना चाहिये चिन्तन को मात्र चिन्तन तक सीमित नहीं करना चाहिये
नूपुर शर्मा प्रकरण पर आई प्रतिक्रियाओं पर आचार्य जी कहते हैं
धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी॥
आपद काल इस समय भी हमारे देश पर है हम लोग विविध क्षेत्रों में संघर्षरत हैं
लेकिन कोई न कोई प्रकाश -विन्दु हमें सहारा देने के लिये प्रकट हो जाता है
उस ने बीडा था
उठाया रे भलाई का
हुआ नहीं वह निराश
चली जब तक सांस
उसे आस थी
प्रभु के वरदान की
यह कहानी है
दिए की और तूफ़ान की
ध्यान धारणा चिन्तन मनन स्वाध्याय आदि करने पर हमें उत्तर मिलने लगते हैं हमें भरोसा रहता है कि ये तूफान शान्त हो जायेंगे
तूफान के रुख को भांपना भी हमारा कर्तव्य है
हम विश्वास करना भी सीखें
संसार समस्याओं का अनमिल जंगल है,
कर्तृत्ववान के मन में सतत सुमंगल है ,
जंगल में मंगल करता भारत का कृतित्व
हर दर का हरता रहता सभी अमंगल है।
संघर्षशील लोग व्याकुल नहीं होते
हम अपने social media को वैश्विक मंच प्रदान नहीं कर सके इसका सदुपयोग करें
हम युगभारती के सदस्यों को आपस में एक दूसरे पर आरोप लगाने से बचना चाहिये किसी के स्व को आहत न करें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने एक सज्जन बजरंग लाल वर्मा जी का उल्लेख क्यों किया अजीम प्रेम जी यूनिवर्सिटी से निकाले जाने पर कौन संघर्षरत है आदि जानने के लिये सुनें
आचार्य जी को संप्रेषण अचानक बन्द करना पड़ा क्योंकि कूड़ा उठाने वाली गाड़ी के शोर से व्यवधान हो गया