1.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 1 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 अनगिन संकट जो झेल बढ़ा, वह यान हमारा अनुपम है। 

नायक पर है विश्वास अटल, उर में बाहों में दम खम है। 

यह रैन अंधेरी बीतेगी, उषा जय मुकट  चढ़ाएगी।।

पतवार चलाते जायेंगे मंजिल आयेगी आयेगी..


प्रस्तुत है सदाचार -हयङ्कष आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 1 जुलाई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w



आत्मस्थ होकर विचार करें कि हम अपना कार्य व्यवहार कितने निर्लिप्त भाव से कर रहे हैं हमें विद्यालय में भी इस तरह के संस्कार मिले हैं कि हम समाज के लिये कुछ करें देश के लिये कुछ करें


इन संस्कारों को अपनी पूंजी मानें निराशा का भाव तो बिल्कुल न आये कि अब इनकी आवश्यकता नहीं और अब तो दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है


हमारा जीवन कैसा है हमारे विचार कैसे हैं हमारे कार्य कैसे हैं हमारा व्यवहार कैसा है यह चिन्तन सदाचार का मूल आधार है


आत्म- चिन्तन आत्म- मन्थन करते हुए इन विचारों को लिखते जाएं

नई पीढ़ी के चिन्तन में परिवर्तन क्यों है सदाचारी चिन्तन क्यों नहीं है इसका उत्तरदायित्व भी हम लेकर जानने का प्रयास करें और उस पीढ़ी को भी समाजोन्मुख बनायें राष्ट्र के प्रति निष्ठावान बनायें


प्रार्थना  हमारी संस्कृति का प्राण है

प्रार्थना  /पूजा  तात्त्विक और मानसिक ऊर्जा के शक्ति स्रोत हैं

प्रार्थना उन महाशक्तियों के प्रति विनम्रता का भाव दर्शाती है जिन्होंने इस सृष्टि की रचना की है


भगवान् राम, हनुमान जी महाराज, मां सरस्वती आदि का स्मरण करते समय उन महाशक्तियों को हमें महसूस करना चाहिये


ये सदाचार संप्रेषण सांसारिक और तात्त्विक शक्तियों को ऊर्जा प्रदान करने के आधार हैं


महाराष्ट्र में इस समय उठ रहे राजनैतिक तूफान और राजस्थान के सामाजिक तूफान से हम परिचित हैं

सरकारें बदलने से प्रायः समस्याओं का समाधान नहीं होता है सरकारों को समाज का मनोबल मिलना आवश्यक है


यदि सरकारों के मुखिया निःस्वार्थी निर्लोभी हों तो प्रकाश की झलक मिलती है


परिवारों से मुक्त होकर अपने कार्य व्यवहार को चलाना कठिन काम है वैराग्य लेकर मतलब न रखें निष्क्रिय हो जाएं यह उचित नहीं


वैराग्य का अर्थ निष्क्रियता नहीं है इसका अर्थ है सक्रियता को और अधिक धारदार बनाना

ऐसा सदाचार ग्रंथों में कहा गया है