प्रस्तुत है गुरूत्तम गुरु श्री ओम शंकर जी( आचार्य जी )का आज दिनांक 13 जुलाई 2022
का सदाचार संप्रेषण
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समीक्षा क्रम सं 349
हम भारतवर्ष के लोग किसी न किसी बहाने कोई न कोई पर्व मनाते हैं हमारे यहां हर उत्सव का एक आधार है कालिदास ने एक स्थान पर लिखा है
उत्सवप्रियाः खलु मानवाः
आज भी एक पर्व है गुरु पूर्णिमा जिसे व्यासपूर्णिमा भी कहते हैं
पुं, (गृणाति उपदिशति वेदादिशास्त्राणि इन्द्रादिदेवेभ्यः इति । यद्वा गीर्य्यते स्तूयते देव- गन्धर्व्वमनुष्यादिभिः । गॄ + “कृग्रोरुच्च ।” उणां । १ । २४ । इति उत् ।)
यह गुरु की परिभाषा है
वेदशास्त्रों का गृणन एक दुर्धर कार्य है लेकिन जो भी परम्परा, परिवार, समाज और आदर्श पुरुषों से मिले सदाचार के ज्ञान से हमें आप्लावित कर दे हम उसे गुरु मान लेते हैं
कूर्मपुराण के अनुसार हम किसी को भी गुरु बना सकते हैं
उपाध्यायः पिता ज्येष्ठभ्राता चैव महीपतिः। मातुलः श्वशुरस्त्राता मातामहपितामहौ। बन्धुर्ज्येष्ठःपितृव्यश्च पुंस्येते गुरवः स्मृताः। मातामही मातुलानी तथा मातुश्च सोदराः। श्वश्रूः पितामहीज्येष्ठा धात्री च गुरवः स्त्रीषु।
इन गुरुओं का शिष्टाचारपूर्वक आदर करना चाहिये
और गुरु के लक्षण हैं
सदाचारः कुशलधीः सर्व्वशास्त्रार्थपारगः । नित्यनैमित्तिकानाञ्च कार्य्याणां कारकः शुचिः ॥
गुरुपूर्णिमा को मनाने का विधि विधान स्मृतिकौस्तुभ, विष्णुभट्ट की पुरुषार्थचिन्तामणिः आदि ग्रंथों में है
हमें अपनी श्रद्धा कहीं न कहीं टिकानी होती है यही श्रद्धा जब हमें सदैव प्रेरित प्रभावित करती रहती है तो भक्ति का उद्भव होता है भक्ति अडिग विश्वास का नाम है
आचार्य जी आज प्रातःकाल दीनदयाल विद्यालय आ रहे हैं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया दिनेश जी (बैच 2016) का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें