14.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 14 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  वीरतर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 14 जुलाई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

समीक्षा क्रम सं 350



राष्ट्रभक्त समाज में संस्कार विचार शौर्य शक्ति संयम श्रद्धा भक्ति विश्वास का प्रसरण हो इसके लिये प्रतिदिन उद्दीपक बने ये सदाचार संप्रेषण प्रस्तुत हो रहे हैं



आचार्य जी ने कल गुरुपूर्णिमा के अवसर पर दीनदयाल विद्यालय में संपन्न हुए कार्यक्रम में मिले विशेष व्यवहार और  मोबाइल पर आये भावुकता एवं श्रद्धा से परिपूर्ण संदेशों की चर्चा की


इस अद्भुत संसार में सम्मान आकर्षित करता है दूसरी ओर अपमान विकर्षित करता है मान सम्मान के लिये मनुष्य जीवनभर संघर्ष करता रहता है

गीता में संसार के स्वरूप को वर्णित करता छंद है 


ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।


छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।।15.1।।


ज्ञानी व्यक्ति इस संसार वृक्ष को ऊपर जड़ और नीचे शाखा वाला अश्वत्थ और अव्यय कहते हैं; जिसके पत्ते छन्द अर्थात् वेद हैं, ऐसे संसार वृक्ष को जो जानता है, वह वेदवित् है।।



अधश्चोर्ध्वं प्रसृतास्तस्य शाखा


गुणप्रवृद्धा विषयप्रवालाः।


अधश्च मूलान्यनुसन्ततानि


कर्मानुबन्धीनि मनुष्यलोके।।15.2।।

हम किसी के कर्मों के हिसाब से अपनी दुनिया बनाना चाहते हैं

इस संसार वृक्ष के वास्तविक स्वरूप का अनुभव इस संसार में रहते हुए नहीं किया जा सकता 



न रूपमस्येह तथोपलभ्यते


नान्तो न चादिर्न च संप्रतिष्ठा।


अश्वत्थमेनं सुविरूढमूल


मसङ्गशस्त्रेण दृढेन छित्त्वा।।15.3।।



ततः पदं तत्परिमार्गितव्य


यस्मिन्गता न निवर्तन्ति भूयः।


तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये


यतः प्रवृत्तिः प्रसृता पुराणी।।15.4।।


निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा


अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।


द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै


र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5।।



संसार में रहते हुए संसार की अनुभूति और उसमें तटस्थ होकर संसार की अनुभूति को समझने की चेष्टा इन सदाचार वेलाओं को सार्थक और आनन्दप्रद बना देगी



अपने जीवन को सफल बनाने के लिये अपने अस्तित्व व्यक्तित्व चरित्र कर्मशीलता का सामञ्जस्य करना हम सीख जाएं तो संसार अच्छा लगने लगेगा

आचार्य जी ने बताया कि सृष्टि की संरचना क्यों और कैसे हुई

वैराग्य उत्थित होने पर कमाल के काम करता है

हम सौभाग्यशाली हैं कि हम मनुष्य हैं यह परमात्मा की कृपा है इसलिये हमें सकारात्मक सोच रखनी चाहिये प्रेत रूप में हम इस संसार में न रहें यह प्रार्थना करनी चाहिये