प्रस्तुत है ज्ञान -प्राणथ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 16 जुलाई 2022
का सदाचार संप्रेषण
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https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
समीक्षा क्रम सं 352
हम शिक्षार्थियों का कर्तव्य है कि आचार्य जी की वाणी से निःसृत सद्विचार हमारे व्यवहार से संयुत हों तभी संसार में हम समस्याओं का समाधान कर सकते हैं
कहीं अतिवृष्टि कहीं अनावृष्टि ऐसा असंतुलित प्रकृति का स्वरूप हमारे अन्दर के सुप्त और विलुप्त शैक्षिक संस्कार के कारण है
यूं तो हम योगमार्गी हैं योगमार्ग के यम से समाधि तक आठ अंग हैं
सभी सजीव प्राणियों को मनसा वाचा कर्मणा दुःख न पहुंचाने का सिद्धान्त ही अहिंसा है
आचार्य जी ने समाधि का अर्थ विस्तार से बताया
आचार्य जी ने यह भी बताया कि हमें क्या कहना चाहिये आम तोड़ लें या आम उतार लें
मनुष्य जीवन त्वरा में नहीं चलता त्वरा राक्षसी प्रवृत्ति है
धीरे धीरे हमारे जीवन में त्वरा प्रवेश कर गई
मन में धीरज रखें तो सब कुछ होता है
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
संगठित सेना की तरह न रहकर भीड़ की तरह रहने के कारण ही हमने ईरान अफगानिस्तान खो दिया
हमारे सदाचार का मूल विषय यही है कि अपने को अपनों को परिवेश को समाज को पर्यावरण को हम सुरक्षित संरक्षित रखें
" प्रचण्ड तेजोमय शारीरिक बल, प्रबल आत्मविश्वास युक्त बौद्धिक क्षमता एवं निस्सीम भाव सम्पन्ना मनः शक्ति का अर्जन कर अपने जीवन को निःस्पृह भाव से भारत माता के चरणों में अर्पित करना ही हमारा परम साध्य है l "
यह हमारा ध्येय वाक्य रहा है
व्यस्त होते हुए भी व्यवस्थित दिनचर्या से हमारी अन्तःशक्ति जाग्रत रहेगी
जैन बौद्ध शैव वैष्णव में बंटा वैविध्य व्यर्थ नहीं है भारतीय संस्कृति में सब समाहित है
आत्मविश्वास से लबरेज रहें कर्मानुरागी बनें संयम का ध्यान रखें
गहन गम्भीर अध्ययनों को व्यावहारिक रूप देकर यदि हम भावी पीढ़ी को समझा देते हैं तो हम समझदार शिक्षक हैं