प्रस्तुत है बोधक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 17 जुलाई 2022
रविवार का सदाचार संप्रेषण
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https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
समीक्षा क्रम सं 353
प्रखर विद्वान ज्ञानी तत्वदर्शी हम मनीषी थे ,
अनोखे आत्मज्ञानी तत्वखोजी हम तपस्वी थे।
उपेक्षा की मगर हमने खडग क्षुर दण्ड शूलों की ,
नई पीढ़ी तभी कहती नहीं 'हम भी जयस्वी थे ' ।।
अध्यात्मवादी से भोगवादी बनने के कारण हम सनातन धर्म में आस्था रखने वाले और कौटुम्बिक परम्परा का निर्वाह करने वाले भारतीयों ने बहुत कुछ खो दिया
हम कौटुंबिक परम्परा में विश्वास रखते थे
हमारे गुरुकुलों में विशेषज्ञता का अध्ययन किया जाता था
सामाजिक व्यवस्था के दो स्तंभ थे वर्ण और आश्रम
कहने का तात्पर्य है कि
इस देश की शिक्षा और संस्कार की बहुत अच्छी आदर्श मानवोचित व्यवस्था थी
जब विदेशीगण यहां स्थापित हो गये तो पतन प्रारम्भ हो गया
चतुर पश्चिमी लोगों ने जानने की कोशिश की कि हमारे अन्दर कौन सा वैशिष्ट्य है कि हम अभाव में भी उत्साहित रहते हैं
उन्होंने पता लगा लिया कि हमारे अन्दर के आत्मज्ञान का मूल आधार अध्यात्म है
भारतवर्ष की शिक्षा का मूल आधार है -- मनुष्य को मनुष्यत्व की अनुभूति
तो अपने स्वार्थ के लिये उन्होंने हमारे मनों को परिवर्तित करना प्रारंभ कर दिया और उसी का परिणाम है कि शिक्षा का विकृत स्वरूप हमारे सामने है
हम अध्यात्मवादी से भोगवादी बन गये भौतिक रूप से हमारा विस्तार होने लगा
भोग सांत व्यवस्था है भोगों का अन्त होगा ऐसा हमें विश्वास है
मार्गांतरणों के बहुत से प्रयासों के बाद भी मूलमार्ग का दिग्दर्शन कराने वाला कोई न कोई उपस्घित हो जाता है
इसीलिये इसे सनातन संस्कृति कहते हैं
इसके समाप्त होने से सृष्टि भी नहीं बचेगी
भारत "भा" में रत सदा, भा का अर्थ प्रकाश।
यह प्रकाश ही ज्ञान है , जीवन का मधुमास। ।
अध्यात्म का चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय करने से हमें आनन्द की अनुभूति होगी
हम अमरत्व विचार हैं , हम भविष्य के ज्ञान।
धरती का आनन्द हम , स्रष्टा का संधान। ।
इसके अतिरिक्त उन्नाव स्थित विद्यालय में आज तीन बजे से पुरस्कार वितरण समारोह है जिसमें भैया राहुल मिठास मुख्य अतिथि हैं
आप सब लोग भी इस कार्यक्रम में आमन्त्रित हैं