19.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 19 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 कह्यो सुदामा बाम सुनु, वृथा और सब भोग। सत्‍य भजन भगवान को, धर्म सहित जप-जोग।।

(सुदामा चरित )


(सुदामा चरित कवि नरोत्तमदास द्वारा अवधी भाषा में रचित काव्य-ग्रंथ है। इसकी रचना संवत १६०५ के लगभग मानी जाती है)



प्रस्तुत है  वेधस् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 19 जुलाई 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

समीक्षा क्रम सं 355


संसार में कारण और कार्य का अद्भुत संबंध है इसका दार्शनिक पक्ष भी अद्भुत है लेकिन व्यावहारिक पक्ष हम रोज ही देखते हैं

इस कार्य कारण संबंध से विमुक्ति के लिये लोग भक्ति का आश्रय लेते हैं


व्यक्ति भजन संगीत अध्ययन संगति आदि द्वारा संसार की सांसारिकता से विमुक्त होकर आनन्द की अनुभूति करता है

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें पूजा पाठ ध्यान धारणा सद्संगति आदि केलिये फुर्सत ही नहीं मिलती वे स्वयं में एक समस्या होते हैं


इसीलिये हमें आत्मस्थ होने का प्रयास करना चाहिये


कुछ देर के लिये हमें भावनाओं में जाने का प्रयास करना चाहिये आरती पूजा करने खिलखिलाकर हंसने आदि से हमें संसारी भाव से मुक्ति मिलती है

गीता में


पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।


तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः।।9.26।।


जो  भक्त मुझे पत्र, फूल,फल, जल आदि भक्ति पूर्वक अर्पित करता है, उस  भक्त का वह अर्पण मैं  सगुण रूप से प्रकट होकर प्रीति सहित ग्रहण  कर लेता हूँ


सगुण रूप से प्रकट होकर खाता हूं यह अद्भुत विषय है

इसके लिये आचार्य जी ने एक कथा सुनाई

कथा इस link पर उपलब्ध है


https://m-hindi.webdunia.com/religious-stories/bhakt-aur-bhagwan-ki-katha-120051000051_1.html?amp=1


भोजन कम हो गया यह किसी को दिख रहा है किसी को नहीं

यही रहस्य है

दिखाई उनको देता है जो उस भाव में बहुत निमग्न हो जाते हैं वह अद्भुत दृष्टि उन्हीं को अनुभव होती है दुनिया को नहीं


आचार्य जी ने सुदामा चरित की चर्चा की


आगे चना गुरुमातु दए ते, लए तुम चाबि हमें नहिं दीने।

 स्‍याम कह्यो मुसुकाय सुदामा सों, चोरी की बानि में हौ जू प्रवीने।।

 पोटरी काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधारस भीने।

पाछिली बानि अजौं न तजी तुम, तैसई भाभी के तन्‍दुल कीने। 48।।


खोलत सकुचत गाँठरी, चितवत हरि की ओर।

 जीरन पट फटि छुटि पख्‍यो, बिथरि गये तेहि ठौर।। 49।।


 एक मुठी हरि भरि लई, लीन्‍हीं मुख में डारि।

 चबत चबाउ करन लगे, चतुरानन त्रिपुरारि।। 50।।


भागवत में कथा है कि सुदामा बहुत कुछ प्राप्त करने के बाद भी विरक्त ही रहे इसी कारण भक्तों में सुदामा शीर्ष पर हैं