20.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 20 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।


मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।


प्रस्तुत है  अलम्भूष्णु आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 20 जुलाई 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

समीक्षा क्रम सं 356


हम परमात्मा के बनाये परिवेश में परिस्थितियों से सामंजस्य बैठाते हुए अपने कर्म में लग जाते हैं

गीता में


नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।


शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः।।3.8।।


संसार में कर्म करने और कर्म न करने में स्पष्ट अन्तर दृष्टिगोचर होता है इसलिये मनुष्य नियत कर्म करे यह अकर्म से श्रेष्ठ है क्योंकि अकर्म से तो शरीर निर्वाह भी सिद्ध नहीं किया जा सकता


 इन्द्रियों के अपने काम निर्धारित हैं मन और चित्त के भी

विकारी परमात्मा अपनी रचित सृष्टि में अच्छा बुरा सब कुछ डाल देता है

हम कभी कभी सोचते कुछ हैं और हो कुछ जाता है लेकिन निराश भ्रमित होकर बैठना उचित नहीं


मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा।


निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः।।3.30।।



मैं ईश्वर के सेवक के रूप में हूं मेरे सारे कर्म ईश्वर को समर्पित हैं

भगवान् कृष्ण अर्जुन से कहते हैं सारे कर्म मुझे अर्पित करते हुए कामना रहित और ममता रहित होकर युद्ध करो

युद्ध किसी भी तरह का हो सकता है

1 जुलाई को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जमशेद बरजोर पारदीवाला की घातक टिप्पणी भारतीय जीवनदर्शन में विश्वास करने वालों को आहत कर गई थी इसमें पूर्वाग्रह से ग्रसित कुण्ठित मानसिकता साफ झलक रही थी

लेकिन हमारा आत्मबोध जाग्रत हुआ और हमने उन विकारग्रस्त लोगों पर टिप्पणी  की और उसका सुखद परिणाम आया

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प्रेत आत्माएं और देव आत्माएं सर्वत्र हैं प्रेत आत्माएं हमें नष्ट करने के लिये उद्यत रहती हैं तो देव आत्माएं सुरक्षा प्रदान करती हैं

संसार संतुलन का है


श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।


स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।।

लेकिन हमने परधर्म को अच्छा मान लिया हमारी दृष्टि धन की सृष्टि में समा गई


आचार्य जी ने यह भी कहा कि किसी विषय को गहराई और गहनता से समझें

केवल चिन्तातुर होकर संदेश न डालें

आचार्य जी ने शौर्य रहित अध्यात्म से हुआ नुकसान बताया

आजकल भी ठगों का दौर चल रहा है समाज का विश्वास टूट गया है

आत्मविश्वास से लबरेज होकर लोगों में विश्वास जगायें कि हम पराभूत नहीं हो सकते

प्रयास तो 1192 से चल रहा है तराइन की दूसरी लड़ाई से


यह 1192 में घुरिद बलों द्वारा राजपूत संघ के खिलाफ तराइन  के पास लड़ी गई थी।  मध्यकालीन भारत के इतिहास में इस लड़ाई को प्रमुख मोड़  माना जाता है क्योंकि इससे उत्तर भारत में  राजपूत शक्तियों का बड़े पैमाने पर विनाश हुआ और  मुस्लिम उपस्थिति स्थापित हो गई


जो चला गया उसे न सोचकर

जो है उस पर विचार व्यवहार   करें

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः