21.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 21 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।


मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।


प्रस्तुत है  विभासा -स्तम्भ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 21 जुलाई 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

समीक्षा क्रम सं 357


सदा का सहचर साहित्य



----दर्शन के कैसे दर्शन हों, हो आंखों में अभिमान जहां---


ऊर्जा प्राप्ति के आधार इन सदाचार संप्रेषणों का यदि लाभ लेना है तो हमें अपना अभिमान त्यागना ही होगा


आचार्य जी ने अपनी पुस्तक गीत मैं लिखता नहीं हूं से एक कविता साहित्य सुनाई



इतिहास लिखूँ सोचा लेकिन तिथि-चक्रों का अनुमान नहीं

भूगोल भला कैसे लिखता भू का, मौसम का ज्ञान नहीं

विज्ञान ज्ञान की विषद विधा मेरे अन्तस्‌ में ज्ञान कहाँ

“दर्शन”! के कैसे दर्शन हों, हो आँखों में अभिमान जहाँ ।


साहित्य सदा का सहचर है कुछ भी कह लो परवाह नहीं

चलते फिरते सुनते गुनते अपनों जैसी भरवाह वहीं

फिर लिखें उसी के लिये चलो चन्दन की अग्नि परीक्षा हो

अपनी अपनी-अपनी विधि से अपनों से सार समीक्षा हो


सद्धर्म मर्म की अमर ध्वजा साहित्य उसी का ध्वजादण्ड

 निर्मल विवेक के व्योम बीच रूपाभ सलोना जलद-खण्ड

 संशय अधीरता के पथ का विश्वास घैर्य सा प्रहरी है

जीवन के सभी प्रबन्धों से, इसकी परिभाषा गहरी है ।


यह अन्तरिक्ष का सत्य धरा का मृदु मंगल कल्पना लोक

विश्वासी का विश्वास अधीरा रुचियों का प्रत्यक्ष शोक

 इसका स्वभाव हित करना है कोई कैसा व्यवहार करे

सुख स्वर्ग सजाने वाला यह इससे संसारी काज सरे।|



साहित्य सदा साथी रहता चाहे पनघट या मरघट हो 

हर अवसर का विश्वास समय की चाहे जैसी करवट हो

मीरा के उर का श्याम सूर के हाथों का इकतारा है

दादू कबीर का राम वही तुलसी का राज दुलारा है

भूषण कवित्व में वीर और श्रृंगार बिहारी दोहों में

सिंहासन पर बन भोज व्यास बन बैठा गहरी खोहों में



यह बाल्मिकि की व्यथा, कथा है पाराशर के जीवन की

सिद्धों की बानी और साधना है सन्‍तों के संयम की

यह है दधीच का त्याग राग अनियारे भूप भर्तहरि का

कुम्भज का अतुल उछाह और उपवास उदार उशीनर का |


यह संयम का संदेश और मर्यादा की परिभाषा है

हारे मन का विश्वास थके उन्‍मन जीवन की आशा है

सहचर सुनसान जगत का यह संकट का सही सहारा है

लहरों में भटकी नौका का यह ही विश्राम किनारा है।


इसमें सर्जन का सुख भी है आनन्द मोक्ष का अपरिसीम

इसमें सन्दर्शन परिदर्शन अन्तर्दर्शन सब रहे झीम

हूं इसीलिए साहित्य-शरण अब जैसा और जहाँ पर हूँ

इसको परवाह नहीं किंचित्‌ कब किसके साथ कहाँ पर हूँ



कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति के पुत्र  मित्र और वरुण दो हिन्दू देवता हैं।   ज्यादातर पुराणों में 'मित्रावरुण' इस एक ही शब्द का उल्लेख है।। ये दोनों जल पर राज करते हैं, जहां मित्र सूर्योदय और दिवस से संबंधित हैं  तो वरुण सूर्यास्त एवं रात्रि से

आचार्य जी इसके बारे में आगे कभी विस्तार से बतायेंगे


क्योंकि वायुमंडल हमारी प्राणिक ऊर्जा का सहचर है इसलिये कल वर्षा होने के कारण आनन्द का वातावरण रहा 

अपने सकारात्मक दृष्टिकोण के कारण उससे उत्पन्न असुविधाओं की हम बात नहीं करेंगे


आचार्य जी ने लेखन योग का महत्त्व बताया


इसके अतिरिक्त भैया राव अभिषेक का नाम क्यों आया जानने के लिये सुनें