ओ वीर वंशधर फिर अपना इतिहास पढ़ो
अभिमंत्रित कर लो अपनी कुलिश-कृपाणों को
आतंकी पारावार ज्वार पर इतराता
संधान करो तरकश के पावक वाणों को
आ गया समय फिर से अंगार उगलने का
अरिदल से कह दो आओ काल बुलाता है।
अरिदल से कह दो आओ काल बुलाता है......
प्रस्तुत है विलुम्पकारि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 22 जुलाई 2022
का दिनभर ऊर्जा प्रदान करने वाला प्रेरक और भावनाओं से ओत -प्रोत सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
समीक्षा क्रम सं 358
हमारा कर्तव्य है कि हम समय का सदुपयोग करते हुए अपने मानस को ग्रहणशील बनाकर आज के विषय पर चिन्तन करें और समीक्षा करें
एक ओर प्रेरणा के लिये
पार्षद से प्रथम नागरिक बनने तक की प्रेरक गाथा
है
तो दूसरी ओर आचार्य जी द्वारा रचित आओ काल बुलाता है शीर्षक की प्रेरक कविता यहां प्रस्तुत है जो हमें उत्साहित और प्रेरित करेगी और हमें सशक्त बनायेगी इसमें बहुत ही सलीके से इतिहास झलक रहा है इसमें
देवासुर संग्राम, भगवान् राम का काल, महाभारत, परीक्षित का काल, औरंगजेब शिवाजी का काल है और अन्त में प्रेरणा देती पंक्तियां
कवि ने अपने कर्तव्य को बहुत खूबसूरती से अंजाम दिया है परमात्मा की लीला के सामंजस्य के साथ
भावों का ज्वाला-मुखी मचलता जब उर में
हर शब्द दहकता अंगारा बन जाता है
सुधियों में उतरा करता है इतिहास अमर
संकल्प अकल्पित मानस में ठन जाता है ।
उपहास सत्य का जब दर-दर होने लगता
गूंजता गगन में वृत्रासुर का अट्टहास
देवता दीन-दुर्बल हो पन्थ भटकते हैं
तब युग-दधीचि आकर अड़ जाते अनायास
यह देवासुर संग्राम सत्य है 'सत्ता' का
चिन्तन कहता है इस पर विवश विधाता है।।॥१।।
भावों का ज्वालामुखी.....
जब स्वार्थ उठाता है अरथी मर्यादा की
कामना सत्य के नयनों में छा जाती है
रण में कराल कालाग्नि पचाने वालों की
कामना, कीर्ति के काँधे चढ़ मुस्काती है
तब दर-दर की ठोकर खाता है राज-मुकुट
घन अन्धकार से सूरज आँख चुराता है।।२॥।
भावों का ज्वालामुखी.....
जब शौर्य भटक जाता अभिमानी गलियों में
वीरता विभव की चेरी बन इतराती है
नारी का शील हवन होता दरबारों में
'साधना' सत्य” से जीवनभर कतराती है
तब पाञ्चजन्य का घोष कैँपाता अन्तरिक्ष
'' युग” को शर-शय्या पर गाण्डीव सुलाता है।।३।।
भावों का ज्वालामुखी....
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जब रक्षक होता भयाक्रान्त तक्षक-कुल से
पौरुष प्राणों की भीख माँगता फिरता है
उन्मत्त हास से काँपा करता दिग-दिगन्त
संयम ठोकर खा-खा कर, उठता गिरता है
तब नागयज्ञ का होने लगता अनुष्ठान
जनमेजय को आहत इतिहास जगाता है।।४।।
भावों का ज्वालामुखी.....
जब दैत्यवंश इतराता अपने जन-बल पर
धरती का कण-कण अनाचार को ढोता है
मानवता शील-हरण के भय से थर्रती
इतिहास खून के आँसू क्षिति में बोता है
तब खड्ग सौंपती शिव के हाथ भवानी माँ
युग के माथे पर प्रलय-मन्त्र लिख जाता हैं |]5ll
भावों का ज्वालामुखी.....
ओ वीर वंशधर फिर अपना इतिहास पढ़ो
अभिमंत्रित कर लो अपनी कुलिश-कृपाणों को
आतंकी पारावार ज्वार पर इतराता
संधान करो तरकश के पावक वाणों को
आ गया समय फिर से अंगार उगलने का
अरिदल से कह दो आओ काल बुलाता है।।६।।
भावों का ज्वालामुखी.....
यह गम्भीर काल है इस समय अधिक से अधिक मात्रा में कवि अपनी रचनाएं वक्ता अपने वक्तव्य विचारक अपने विचार संयमित प्रेरक और व्यावहारिक तत्त्वों से परिपूर्ण प्रस्तुत करे जिनसे हमारा राष्ट्र सशक्त बने
हम छोटे से दीपक भी सूर्य के वंशज हैं राष्ट्र के लिये प्रकाश तो फैलायेंगे ही
व्यक्तिगत यश की परवाह न कर अपने कार्यों को राष्ट्रार्पित करें