रणधर्म जाग, रिपु खङ्ग निहार रहा है
युग-धर्म जाग दानव ललकार रहा है
खाण्डवी आग | विष फिर फुंकार रहा है ll
प्रस्तुत है शुष्म -स्तम्भ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 24 जुलाई 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
समीक्षा क्रम सं 360
संसार विचार विकार, सद्गुण दुर्गुण शुद्धि अशुद्धि का मिलाजुला स्वरूप है
समुद्र तट की तरह संसार हमें एक ओर आकर्षित करता है तो दूसरी ओर भयभीत भी करता है
जन्मदिन पर मोमबत्तियां बुझाना आदि समाज और संसार के विकार हैं पश्चिमी लोग जीवन में घटते हैं यह यथार्थ हो सकता है लेकिन भारतवर्ष की जीवनपद्धति इसके विपरीत है
तिथि -तत्व, समय -मयूख,
और वर्ष -कृत्य कौमुदी इन तीनों पुस्तकों में भिन्न भिन्न प्रकार से जन्मदिन मनाने की आदर्श विधियां बतलाई गई हैं
उस दिन गुरु देव अग्नि ब्राह्मण माता पिता प्रजापति का पूजन सम्मान आवश्यक है हम चिरजीविता चाहते हैं तो चिरजीवियों का ध्यान और पूजन भी आवश्यक है
अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्चैव सप्तैते चिरजीविनः॥
सप्तैतान् स्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयं तथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोऽपि सर्वव्याधिविवर्जितः॥
धर्म ग्रंथों के अनुसार मार्कण्डेय ऋषि अमर हैं। आठ अमर लोगों में मार्कण्डेय ऋषि का भी नाम आता है। इनके पिता मर्कण्डु ऋषि थे। जब मर्कण्डु ऋषि को कोई संतान नहीं हुई तो उन्होंने अपनी पत्नी के साथ भगवान शिव की आराधना की। उनकी तपस्या से प्रकट हुए भगवान शिव ने उनसे पूछा कि वे गुणहीन दीर्घायु पुत्र चाहते हैं या गुणवान लेकिन अल्पायु पुत्र। तब मर्कण्डु ऋषि ने कहा कि उन्हें अल्पायु लेकिन गुणी पुत्र चाहिए। भगवान शिव ने उन्हें ये वरदान दे दिया.........
(https://m.punjabkesari.in/dharm/news/how-markandeya-rishi-got-the-blessing-of-immortality-from-bholenath-733105?amp ) से साभार
शक्ति-शौर्य का संवर्धन और प्रकटीकरण हमारा युग-धर्म है इसी युग -धर्म पर आधारित
आचार्य जी ने अपनी रचित युग -धर्म जाग नामक कविता सुनाई
युग- धर्म जाग
युग-धर्म जाग दानव ललकार रहा है
खाण्डवी आग | विष फिर फुंकार रहा है ll
विश्वास हुआ नीलाम भरे चौराहे
अपनी भेड़ें खा गये क्षुधित चरवाहे
गुरुता गुरुत्व से बोझिल भूमि-धँसी है
अपनी गरदन अपने ही हाथ कसी है
सत्कर्म जाग नैराश्य निहार रहा है
युग-धर्म जाग..... |l 1 l|
सद्भाव सत्य संयम की केवल बातें
अपने अपनों के बीच चल रही घातें
सन्यस्त भाव सुख सुविधा पर ललचाता
तप-त्याग विवश दुख-दुविधा मौन पचाता
जग-मर्म जाग संसार पुकार रहा है
युग-धर्म जाग..... ।l 2 ll
कब कहाँ किसलिये कौन किसे छलता है
मयखाने में ऐसा ही सब चलता है
अभिजात पड़े बेपर्दा हो पिछवाड़े
दम तोड़ गयी मर्यादा फटे किवाड़े
ओ | शर्म जाग संयम धिक्कार रहा है ।
युग-धर्म जाग ...ll 3 ll
सुखमय विलास घर-घर में जाग रहा है
पौरुष संघर्षों से डर भाग रहा है
जीवन की परिभाषा बदनाम हुयी है
सूरज उगने के पहले शाम हुयी है
ओ | वर्म जाग तन स्वर्ग सिधार रहा है।
युग-धर्म जाग..... ।l 4 ll
संयोग नहीं ये सधी हुयी चालें हैं
भयभीत न हो ये सड़ी हुयी ढाले हैं
हिम्मत बाँधो फिर दीप जलाओ अपना
हो भले भयावन पर केवल यह सपना
मख-मर्म जाग परमारथ हार रहा है
युग -धर्म जाग l l 5 l l
अब जनमत का जामा उतारना होगा
हर मन का दम्भ-भुजंग मारना होगा
फिर क्षात्र धर्म का आवाहन अभिमंत्रण
प्रलयंकर के ताण्डव को प्रथम निमंत्रण
रणधर्म जाग, रिपु खङ्ग निहार रहा है
युग -धर्म जाग...... ll 6 ll