विधाता स्वयं ही निज सृष्टि में परिव्याप्त रहता है ,
कि, अनगिन नाम रूपों से बहुत कुछ रोज कहता है,
कि, सुनने औ समझने की जहां पर शक्ति जितनी है ,
वहां उतना रसार्णव हर घड़ी हर काल बहता है ।।ओम शंकर
प्रस्तुत है इङ्गितकोविद आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 25 जुलाई 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
समीक्षा क्रम सं 361
धन के संग्रह की तरह ही विचारों का भी हम संग्रह कर सकते हैं
भौतिकता से इतर आध्यात्मिकता का संग्रह अधिक अच्छा है
महापुरुषों द्वारा तात्कालिक सुझाए गये समाधान और प्रश्नों पर दिये गये उत्तर इसी संग्रह के परिणाम होते हैं
हमारा हर कार्य व्यवहार विचार ध्यान शक्ति भक्ति प्रेरणा भारत माता के लिये है
यह भाव हमारा सदैव बना रहना चाहिये
भारत मां की अद्भुतता का वर्णन आचार्य जी ने किस प्रकार किया है निम्नलिखित दोहों में परिलक्षित हो रहा है
अनगिन भाषा बोलियां बहुविध भूषा वेश
फिर भी हम सब एक हैं ऐसा अपना देश
आत्मज्ञान संपन्न है पूरा भारत देश
केवल हैं अभिव्यक्तियां विविध विभिन्न विशेष
जय परमेश्वर जय जगत जय अणु रेणु महान
दृश्यमान जय हे सकल जड़ तृण जीव जहान
वर्तमान परिस्थितियों को अब हम जब देख रहे हैं तो हमें वर्तमान के संबन्ध में भी प्रेरणा मिले इसके लिये प्रस्तुत है आचार्य जी की एक बहुत अच्छी कविता
अब केवल हुंकार नहीं
सीमापार हो गयी साथी फिर क्यों सीमा पार नहीं
अम्बर के अंगारे चुप क्यों दहकी अगिन बयार नहीं।
माँ का आँचल सराबोर है रोज खून की होली से
रातें चौंक-चौंक उठती हैं सीमाओं पर गोली से
अरुणोदय सब धुवा-धुवाँ आहत बसन्त अब ज्वाला है
भय से थर्राया है पूरब सूरज निकला काला है
भैरव गीत सो रहे अब भी क्यों चमकी असिधार नहीं | |१। |
सीमा पार हो गयी.....
हम दुनिया के लिये हमेशा हवन जिन्दगी करते हैं
विष पीते हैं स्वयं दूसरों के हित अमृत झरते हैं
स्वागत किया मौत का आगत को न कभी ठुकराया है
कभी न ऐसा भान हुआ अग-जग में कोइ पराया है
पर दुनिया के छल-छंदो का मिला अभी तक पार नहीं | ।२।।
सीमा पार हो गयी....
लहू पिला कर पाला जिसको वह विषधर भुजंग निकला
बगल दबाये खूनी खंजर बेशक हँस-हँस गले मिला
गला फाड़कर भाई-भाई हम चिल्लाते रहे मगर
मौका मिला जहाँ पर, जिस पल, खुल कर लेता रहा खबर
शायद ही चूका हो पल जब अजमाया हथियार नहीं | ।३।
. सीमा पार हो गयी.....
बाँट दिया अपने खेतों को पानी और पहाड़ों को
आँसू पी पुरजोर दबा कर ममता भरी दहाड़ों को
सोचा था अब शान्त हो गया कटा-बँटा आँगन अपना
शायद कुछ आकार ले सके भारतमाता का सपना
पर कोई दिन हुआ न जिसने झेला कुलिश प्रहार नहीं | |४ | ।
सीमा पार हो गयी.....
सुबह उठा करती है सुनकर तोप तमंचों की गोली
सोती साँझ सिसकती, सुनती श्वान सियारों की बोली
बारूदों का धुवाँ भरा हर छोर इबादतगाहों में
पहचानें खो गयीं सभी की नफरत भरी निगाहों में
अब खुद हो कर बढ़ो जवानों दुनिया की दरकार नहीं | |५ | |
सीमा पार हो गयी.....
हमने सागर की छाती पर चढ़कर राह बनायी है
दुनिया का दिल जीत गगन में विजय-ध्वजा फहरायी है
दूध पिलाते हम नागों को और हवन भी करते हैं
अपने पर आये संकट को अपने बल पर हरते हैं
अब तक जो कुछ हुआ हो चुका अब हम हैं, सरकार नहीं | ।६।।
सीमा पार हो गयी...
उठो जवानों फिर से अपना भारत पूर्ण बनाना है
अपने वज् प्रहारों से संगर में शत्रु सुलाना है
समय आ गया अनल-्मंत्र को फूँक भविष्य सजाने का
कुलिश कवच को धारण कर भैरव स्वर को दोहराने का
वार करो भरपूर भयानक अब केवल हुंकार नहीं | |७।।
सीमा पार हो गयी.....