प्रस्तुत है कथक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26 जुलाई 2022
का सदाचार संप्रेषण
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https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
समीक्षा क्रम सं 362
आज 26 जुलाई है यह दिन करगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है
26 जुलाई, 1999 को पाकिस्तानी सेना के सैनिकों को उनके कब्जे वाले स्थानों से बेदखल करने के साथ युद्ध आधिकारिक रूप से समाप्त हो गया, इस प्रकार इसे करगिल विजय दिवस के रूप में चिह्नित किया गया।
विजय का भाव प्रत्येक भारतवासी के हृदय में जाग्रत रहना चाहिये
भारत जब विजय का संकल्प लेता है तो उसका कोई उत्तर नहीं दे पाता
हमें देश के शौर्य पराक्रम शक्ति धैर्य उत्साह पर गर्व करना चाहिये
आचार्य जी ने करगिल विजय पर एक बहुत अच्छी कविता शौर्य- स्तवन लिखी
प्रस्तुत है यह कविता
क्या कहा। करगिल कलम की नोंक से लिख दूँ
घधकते शौर्य का लावा उठाकर पृष्ठ पर रख दूँ
कहाँ संभव ।
कलम हो वज्र की जो पी सके स्याही हलाहल की
कि हों पन्ने अडिग चटटान जो सह लें कथा बल की
तभी शायद लिखे कुछ वीरगाथा लेखनी किञ्चित,
कदाचित, दिख सके चट्टान की दुनिया लहू सिञ्चित |
अरे यह शौर्य का इतिहास है विश्वास जीवन का
अमरता का यशोगायन उमड़ता ज्वार यौवन का
इसे पढ़ते कुशीलव की गिरा अवरुद्ध हो जाती
घुमड़ती भावना के छन्द वाणी कह नहीं पाती । |
किशोरों का अगम उत्साह जज़्वा मौत छूने का
झपट बढ़ कर उठाया जो गरल काँपा सफीने का
नहीं विश्वास होता है सुकोमल अधखिली कलियाँ
किलक जिनकी न भूली हैं अभी तक गाँव की गलियाँ |
वही यम-द्वार पर दस्तक बजाते हैं खड़े हँसते
विजय का ले अटल विश्वास अरि को जा रहे कसते
चढ़े जैसे शिखर "जय” बोल तो भूडोल सा आया
हिमानी वादियाँ काँपी घिरा फिर मौत का साया।
कि युग के व्यास ने देखा अरे। फिर से महाभारत
शताधिक दिख गये अभिमन्यु संगर में अटल अविरत
दिखी फिर व्योम में छाई भयानक दानवी सेना
गरज गूँजी, उठी ललकार “पग आगे न रख देना |!
बहुत बाजीगरी कर ली असल संग्राम में आओ
अलहदा सुन चुके खुतबा बिदाई-गीत मिल गाओ
जलेंगी होलियाँ क्षण में सभी अरमाँ गुमानों की
धँसेंगी गोलियाँ हर जिस्म पर सौ-सौ जवानों की।
कहीं ललकार लक्ष्मण की कहीं अभिमन्यु अलबेला
कहीं गोरा कहीं बादल कहीं बस केसरी चोला
कहीं बन्दा बहादुर काटता अरि को कतारों में
अकेले ही जोरावर जूझता फिरता हजारों में।
अजब माहौल है, कैसा नशा कुर्बान होने का
भरे अरमान अरि के वक्ष में खंजर चुभोने का
कहीं जय हो भवानी वीरवर बजरंग की जय हो
विजय हो भारती माँ की विजयिनी खग की जय हो |
कहीं घनघोर रव में गूँजता हर हर महादेवम्
कहीं हुंकार सत् श्री sकाल, अरिदल में मचा संभ्रम |
अरे यह क्या? कहर बरपा | न सोचा था इसे सपने
कहाँ पर मर गये, वे सब बनाये थे जिन्हें अपने
अरे जेहाद, जन्नत, जिस्म, दौलत कुछ नहीं आयी
फ़कत वीरान बर्फीली जलालत की कबर' पायी
मची है एक ऊहापोह मजबूरी समर लड़ना
लुटेरे ये किराये के, न सीखा था कभी अड़ना।
हुआ संग्राम धरती-व्योम के धुर मध्य अलबेला
किलकते दूध में पावन लहू से फाग खुल खेला
बचाई आन भारत के मुकुट अवशेष की फिर से
किया संकल्प खण्डित भाग पाने को अटल फिर से |
शपथ ली है हिमालय के शिखर पर शौर्य ने फिर से
बजाई दुंदुभी जय की मुखर हो धैर्य ने फिर. से
सुनी भेरी विजय की मस्त 'लरकाना' हुआ फिर से
जयस्वी हॉक से आश्वस्त 'ननकाना” हुआ फिर से |
लिया संकल्प छू माटी धरा गूँजी गगन गूंजा
लहू से कर विजय अभिषेक हिमगिरि भाल को पूजा
अटल संकल्प है भारत अखण्डित अब पुनः होगा
बना अवरोध जो भी राह में खण्डित पड़ा होगा।
चढ़ा सुविधा सलीबों पर सिसकता देश जोड़ूँगा
अपावन बन्धनों को तोड़ चिन्तन राह मोड़ँगा
लचर कायर कपूतों के कुकर्मों को मिटाऊँगा
कि विजयी मस्तकों पर चरण रज माँ की सजाऊँगा |
विजय संकल्प अपने देश के घर गाँव में पहुँचा
भरी चौपाल से चल नीम वाली छाँव में पहुँचा
कि आँसू पोंछती माँ की विजय मुस्कान में पहुँचा
भविष्यत् को छिपाये कोख की सन्तान में पहुँचा |
सजी राखी, तिलक अक्षत विजय के थाल में पहुँचा
भरे अरमान वाले देश के हर लाल में पहुँचा
कि, दुश्मन के दरों दीवार के हर कोर में पहुँचा
मरण का दर्द बनकर पाक के हर पोर में पहुँचा।
कि मरना है तुम्हें ओ पाप | जितने दिन मिले जी लो
हलाहल ही निगलना है अभी बेशक सुरा पी लो।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हस्तलिखित नीराजन से संबंधित कौन सा प्रसंग सुनाया
क. र. गि. ल क्यों आया
भैया शशि शर्मा भैया दिनेश भदौरिया आचार्य जी श्री आनन्द जी का नाम क्यों आया जानने के लिये सुनें