प्रस्तुत है ज्ञान -वहती आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 27 जुलाई 2022
का सदाचार संप्रेषण
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समीक्षा क्रम सं 363
महाभारत एक विशाल और अद्वितीय ग्रंथ है इसमें देश काल घटनाएं विधि विधान इतिहास शास्त्र सहित बहुत कुछ है यह पाठक की दृष्टि पर निर्भर करता है कि वो इसमें क्या देखता है
महाभारत में द्वापर के अन्त और कलियुग के प्रारंभ का संकेत है ऊंच नीच धन दौलत कुल परम्परा का संकेत है इससे यह भी परिलक्षित होता है कि यदि पाप ही पाप व्याप्त है तो पुण्य भी कहीं न कहीं सुरक्षित होगा ही क्योंकि बीज कभी मरता नहीं
इसमें विदुरनीति आज भी प्रासंगिक है
अपने भाई धृतराष्ट्र की इच्छा और जिज्ञासा पर विदुर उनको समझा रहे हैं कि मोहान्ध होकर नियम नीति का त्याग कर जो मनुष्य काम करता है तो उसकी स्थिति अत्यधिक अद्भुत होती है
धृतराष्ट्र मनुष्य का यथार्थ स्वरूप हैं वह ज्ञानी भी हैं तो अज्ञानी भी हैं चिन्ता करते हैं तो चिन्तन भी करते हैं मोहग्रस्त हैं तो त्यागी भी कम नहीं
विदुर कहते हैं
न देवा दण्डमादाय रक्षन्ति पशुपालवत्।
यं तु रक्षितुमिच्छन्ति बुद्ध्या
संविभजन्ति तम्॥
देवता लोग चरवाहों की भाँति डण्डा लेकर मनुष्यों की रक्षा नहीं करते, लेकिन वे जिसकी रक्षा करना चाहते हैं उसे अपनी रक्षा के लिये उत्तम बुद्धि प्रदान करते हैं।
उत्तम बुद्धि की रुचियां भी वैसी ही हो जाती हैं
जैसे
आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।
रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः।।17.8।।
तो दूसरा रजोगुणी लोगों का भोजन कैसा है
कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णरूक्षविदाहिनः।
आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः।।17.9।।
और तामसी लोगों का भोजन
यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत्।
उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम्।।17.10।।
है
इनकी बुद्धि देवता इस तरह की बना देते हैं वे अविश्वासी भी होते हैं
विदुर एक कथा सुनाते हैं
प्रह्लाद पुत्र विरोचन , केशिनी नाम की एक अनुपम सुन्दरी कन्या के स्वयंवर में विवाह की इच्छा से पहुँचा।केशिनी सुधन्वा नाम के ब्राह्मण से विवाह करना चाहती थी।केशिनी ने विरोचन से पूछा — विरोचन ! ब्राह्मण श्रेष्ठ होते हैं या दैत्य ? यदि ब्राह्मण श्रेष्ठ होते हैं , तो मैं ब्राह्मण पुत्र सुधन्वा से ही विवाह करना पसंद करूँगी ।विरोचन ने कहा , हम प्रजापति की श्रेष्ठ संतानें हैं, अत: हम सबसे उत्तम हैं । हमारे सामने देवता भी कुछ नहीं हैं तो , ब्राह्मण श्रेष्ठ कैसे हो सकते हैं।
केशिनी ने कहा इसका निर्णय कौन करेगा? सुधन्वा ब्राह्मण जानता था कि ,दैत्य राज प्रह्लाद यहाँ के राजा हैं तथा धर्मनिष्ठ भी।अत: प्रह्लाद जी के पास जाने का प्रस्ताव सुधन्वा ने रखा।विरोचन को विश्वास था कि पिताजी तो निर्णय अपने पुत्र के पक्ष में ही देंगे।अत: विरोचन तथा सुधन्वा ने प्राणों की बाजी लगा ली ।अब केशिनी सुधन्वा तथा विरोचन तीनों प्रह्लाद जी की सभा में पहुँचे।
प्रह्लाद ने अपने सेवकों से सुधन्वा ब्राह्मण के सत्कार के लिये जल तथा मधुपर्क मँगाया तथा बड़े ही भाव से ब्राह्मण के चरण धुलवाकर आसन बैठने को दिया तथा पूछा कि आपने यहाँ आने का कष्ट कैसे किया? सुधन्वा ने कहा ! मैं तथा आपका पुत्र विरोचन प्राणों की बाजी लगाकर यहाँ आये हैं , आप बतायें कि ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं अथवा विरोचन ?
प्रह्लादजी यह सुनकर गंभीर हो गये।उन्होंने कहा , ब्रह्मण ! मेरे एक ही पुत्र है और इधर धर्म , मैं भला कैसे निर्णय दे सकता हूँ ? विरोचन ने कहा – राजन ! नीति जो कहती है , उसके आधार पर ही निर्णय कीजिये ।प्रह्लादजी ने अपने पुत्र से कहा– विरोचन ! सुधन्वा के पिता ऋृषि अंगिरा , मुझसे श्रेष्ठ हैं , इनकी माता , तुम्हारी माता से श्रेष्ठ हैं तथा सुधन्वा तुमसे श्रेष्ठ है । अत: तुम सुधन्वा से हार गये हो।सुधन्वा आज से तुम्हारे प्राणों का मालिक है।
सुधन्वा बोला– आप ने स्वार्थवश असत्य नहीं कहा है। आपने धर्म को स्वीकार करते हुये न्याय किया है , इसलिये आपका पुत्र मैं आपको लौटा रहा हूँ
( https://anandakandakripa.com/tag/bishnu-bhakt-prahlad-ki-katha-the-story-of-the-son-of-prahlad-and-sudhanwa-brahman-virochan-and-sudhanwa-ki-katha )
आज भी अविश्वास का दौर चल रहा है अल्पसंख्यक कम्युनिस्ट लेफ्ट लिबरल नक्सली अपना अपना राग अलाप रहे हैं
तो हमें अपना कर्तव्य समझना होगा तभी ये संप्रेषण सार्थक होंगे