28.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 28 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः

स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः।

नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः

परोपकाराय सतां विभूतयः॥


नदियाँ अपना जल स्वयं नहीं पीतीं । पेड़ फल खुद नहीं खाते, बादल भी फसल नहीं खाते हैं। उसी प्रकार सज्जनों की सम्पत्ति परोपकार के लिए होती है।

हमारे सारे कार्य  भी राष्ट्र के लिये समर्पित हों



प्रस्तुत है अध्यात्म -प्रवहण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 28 जुलाई 2022

 का  सदाचार संप्रेषण




अल्प ज्ञान से व्यक्ति अनेक उलझनों में फंस जाता  है बच्चे में संसारी भाव कैसे विकसित होता है इसके लिये आचार्य जी ने एक उदाहरण दिया कि बच्चा अज्ञानी होते हुए खिलौना समझकर अंगारा  छू लेता है  अंगारा छूकर बच्चा संसार के संभ्रम को समझने लगता है इस प्रकार मां उसकी पहली मार्गदर्शक होती है


हमारे द्वारा सूक्ष्म से विराट् तक की यात्रा में व्यवस्थित दिनचर्या का पालन करने के साथ साथ , जिज्ञासा रखते हुए धैर्यपूर्वक अध्ययन और फिर सहजता से स्वाध्याय अनिवार्य है



अध्ययन के बाद उसे स्व में पचाना ही स्वाध्याय है

एक ही पल में सूक्ष्म विराट् बन सकता है और विराट् सब कुछ कर सकता है,वह सब जानता है, वह पूर्ण है,उसमें कोई कमी नहीं है l



हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें गीता और मानस जैसे ग्रंथ मिले हैं



गीता मानस का अधिक लाभ प्राप्त करने के लिये हमें निश्चिन्तता के साथ आत्मस्थता चाहिये

वायुमण्डल की शुद्धि के लिये अपनी शान्ति के लिये हमें पूजा पाठ आरती आदि करनी चाहिये


भक्तों का आदर्श स्वरूप अर्जुन जब उत्क्रान्त हो गये तो भगवान् के आदर्श स्वरूप श्रीकृष्ण  उन्हें समझाते हैं 

भगवान् अपना विराट् रूप अर्जुन को दिखा चुके थे

इसके बाद


न वेदयज्ञाध्ययनैर्न दानै


र्न च क्रियाभिर्न तपोभिरुग्रैः।


एवंरूपः शक्य अहं नृलोके


द्रष्टुं त्वदन्येन कुरुप्रवीर।।11.48।।


हे अर्जुन

तुम्हारे अतिरिक्त इस मनुष्य लोक में किसी अन्य के द्वारा मैं इस रूप में, न वेदों के अध्ययन और न तो यज्ञ, दान,धार्मिक क्रियायों के द्वारा और न उग्र तपों के द्वारा ही देखा जा सकता हूँ।


मा ते व्यथा मा च विमूढभावो


दृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्ममेदम्।


व्यपेतभीः प्रीतमनाः पुनस्त्वं


तदेव मे रूपमिदं प्रपश्य।।11.49।।



इस प्रकार मेरे इस घोर रूप को देखकर तुम व्यथा और मूढ़भाव को मत प्राप्त हो। निर्भय और प्रसन्नचित्त होकर तुम पुन: मेरे उसी (पूर्व के) रूप को देखो।।





 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

समीक्षा क्रम सं 364



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मां हीरा बा, भैया आकाश मिश्र भैया परमपुरिया भैया अशोक का नाम क्यों लिया

जूना से आचार्य जी का क्या आशय था जानने के लिये सुनें