जो करता है परमात्मा करता है और परमात्मा सब अच्छा ही करता है
प्रस्तुत है दीपन आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 30 जुलाई 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
सार -संक्षेप वर्ष 2 क्र सं 1
हम सब लोग राष्ट्र -यज्ञ की हवन -सामग्री हैं उस सामग्री का महत्त्व और सार्थकता इसी में है कि उसे उचित अग्नि में
त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये।
गृहाण सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर।।
(हे गोविन्द, सब कुछ आपका ही दिया हुआ है उसे आपको ही समर्पित कर रहे हैं आपके सम्मुख जो भी है, उसे प्रसन्नतापूर्वक ग्रहण करें।)
के भाव के साथ
प्रवेश कराया जाए और उसकी सुगन्ध फैले
यही सनातन चिन्तन है भारतीय चिन्तन है
इस राष्ट्र -यज्ञ में अनगिनत लोगों ने अपने को होम दिया
हमें अपने को सौभाग्यशाली मानना चाहिये कि हम ऐसे देश से संयुत हैं जहां ज्ञान का अथाह भण्डार है वेद उपनिषद् मानस गीता महाभारत की तुलना ही नहीं की जा सकती
प्रतिदिन हममें से बहुत से लोग इन सदाचार संप्रेषणों को सुनते हैं इनसे हमें पूरे दिन की ऊर्जा मिलती है सांसारिक प्रपंचों में निराशा का जड़त्व समाप्त होता है और ये हमें उत्साह से भरते हैं
हम कर्म से विमुख नहीं हो सकते चिन्तक विचारक लेखक क्रान्तिकारी तिलक जी द्वारा रचित गीता रहस्य में भी कर्म को ही महत्त्वपूर्ण बताया गया है
ईशावास्य उपनिषद् में
ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ॥
इसका एक एक शब्द गहन और गम्भीर है इसके अर्थ में जाएं तो मन बहुत उत्तरदायित्व और भावनाओं से भर जाता है इसी कारण आचार्य जी ने युगभारती की प्रार्थना में इस छन्द को समाहित किया
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥
गीता में
क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।2.63।।
रागद्वेषवियुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन्।
आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति।।2.64।।
यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर।।3.9।।
कर्म कर्म कर्म
कर्म ही महत्त्वपूर्ण है
इन छन्दों की व्याख्या बहुत विशद है लेकिन हम अपने कर्तव्य का निर्धारण करें
हमारा लक्ष्य है राष्ट्र निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बैरिस्टर साहब, ठाकुर जी, वर्णेकर जी, सु. स्वामी का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें