प्रस्तुत है भाव -प्रशत्त्वन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 6 जुलाई 2022
का सदाचार संप्रेषण
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https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
तत्त्वज्ञान से भरपूर भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वाधिक प्राचीन और समृद्ध संस्कृति है। यह संस्कृति आदि काल से ही अपने परम्परागत अस्तित्व के साथ अजर-अमर बनी हुई है। इसकी उदारता तथा समन्वयवादी गुण बेमिसाल हैं l यहां सिखाया जाता है कि लेनदेन ही सब कुछ नहीं है l हमारे साहित्य का कथाभाग भी बहुत महत्त्वपूर्ण है
पहले तो हम इस बात पर दृढ़ रहें कि हमारी परम्परा, विचार, जीवनशैली, ज्ञान विश्व में अद्वितीय है
फिर अपनी भाषा और अपने भावों के प्रति हमें श्रद्धा होनी चाहिये
और नित्य अपने परिवार के वातावरण को परिवर्तित करने के लिये एक अनुष्ठान लेना चाहिये
सस्वर पूजा होगी भोजन के पहले भोजनमन्त्र होगा मांसाहार से दूर रहना होगा
यह ब्राह्मणत्व की जीवनशैली में अनिवार्य है
लेकिन क्षत्रियत्व की जीवनशैली में तमोगुणी संपर्क की छूट है उन्हें शिकार की अनुमति है
वैश्य लाभ लेगा ही
इसीलिये कहा गया है
सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।
सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।
कुल मिलाकर वर्ण और आश्रम की उचित जानकारी आवश्यक है
हम इस ज्ञान की परम्परा को अपने परिवार में कर्मकांड के साथ खानपान के साथ और विचार व्यवहार के साथ संयुत कर लेते हैं तो भ्रमित नहीं होंगे
भ्रम से ही निराशा कुंठा आदि आती है भय आता है
सोशल मीडिया पर प्रचार का हिस्सा बन जायें लेकिन उसे व्यवहार में न लायें तो यह हानिप्रद स्थिति है
इसके अतिरिक्त उपाध्याय का क्या अर्थ है संहिता किसे कहते हैं जानने के लिये सुनें