7.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 7 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है वाङ्मय आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 7 जुलाई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w


आचार्य जी मांसाहार के पक्षधर कतई नहीं हैं आयुर्वेद भी यही कहता है मनुष्य के लिये मांसाहार है ही नहीं क्योंकि उनकी आंतें आदि भी इसके अनुकूल नहीं होती हैं


शाकाहारी भोजन मांसाहारी भोजन की तुलना में हल्का होता है और इसे पचने में बहुत कम ऊर्जा और समय की आवश्यकता होती है।


शाकाहारी भोजन अमीनो एसिड, प्रोटीन और विटामिनों से भरपूर होता है


आधुनिक पैथोफिजियोलॉजिकल प्रयोगों और अध्ययनों में पाया गया है कि जब मांस ठीक से नहीं पचता तो इसके परिणामस्वरूप एनारोबिक बैक्टीरिया का प्रसार होता है जो अंततः शरीर में छद्म मोनोमाइन जैसे विषाक्त पदार्थों का निर्माण करता है।


दार्शनिक सिद्धांतों में एक सिद्धान्त है ख्याति सामान्य अर्थ में ख्याति से तात्पर्य प्रसिद्धि, प्रशंसा, प्रकाश, ज्ञान आदि समझा जाता है। पर दार्शनिकों ने इसे सर्वथा भिन्न अर्थ में ग्रहण किया है। उन्होंने वस्तुओं के विवेचन की शक्ति को ख्याति कहा है और विभिन्न दार्शनिकों ने उसकी अलग-अलग ढंग से व्याख्या की है।

आत्मख्याति,असत् ख्याति, अख्याति,अन्यथा ख्याति और अनिर्वचनीय ख्याति प्रकार हैं


सांख्यदर्शन में तीन प्रकार के तत्त्व हैं  व्यक्त, अव्यक्त तथा ज्ञ l

 मूल प्रकृति को अव्यक्त कहते हैं 

मूल प्रकृति के परिणाम को व्यक्त कहते हैं


जो व्यक्त अव्यक्त को जान लेते हैं ऐसे लोगों की ख्याति असंयत नहीं होती लेकिन इनके आंशिक या अल्प ज्ञान वाले व्यक्ति की यदि ख्याति हो जाती है तो कभी कभी वह स्खलित हो जाता है 


पहले सुनना फिर विचार करना और उसके बाद अपनी बात कहने का हौसला रखना अच्छी बात होती है


संसार के यथार्थों में हमारी गति मति बनी रहे इसके लिये अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन शरीर की शुद्धि शक्ति आवश्यक है

ऐसे लोगों का संगठन समाज की शक्ति बनकर सामने आ जायेगा


जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जमशेद बरजोर पारदीवाला की घातक टिप्पणी का हर जगह विरोध शुभ संकेत है


युगभारती भी इसका विरोध कर रही है


व्यापार और व्यवहार के बीच में किस प्रकार का सामंजस्य हमें रखना है इसका चिन्तन भी करें


और धैर्य भी रखें


धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।


हमारा देश हमारी संस्कृति अक्षय है



तैयार रहो मेरे वीरो, फिर टोली सजने वाली है।

तैयार रहो मेरे शूरो, रणभेरी बजने वाली है॥

इस बार बढ़ो समरांगण में, लेकर वह मिटने की ज्वाला।

सागर-तट से आ स्वतन्त्रता, पहना दे तुझको जयमाला॥