1.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 1 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 त्याग” कोष का शब्द, 

देश का चिन्तन अर्थ प्रधान हो गया | |


प्रस्तुत है अभ्यागारिक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 1 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/3


आचार्य जी द्वारा उद्बोधित इन सदाचार वेलाओं के प्रति हमारी जिज्ञासा दिन प्रति दिन बढ़ती ही जा रही है और उसका कारण है कि सांसारिक प्रपंचों में उलझकर ज्यादातर व्यर्थ किये गये समय से इतर इस समय का सदुपयोग हो जाता है

यह मार्गदर्शन हमारे लिये अत्यन्त उपयोगी है बस समझने भर की देर है


आचार्य जी चाहते हैं कि  भारतीयता के प्रति  हमारे अन्दर जिज्ञासा उत्पन्न हो और उस जिज्ञासा के समाधान के लिये हम मानस गीता उपनिषदों वेदों आदि ग्रंथों का आश्रय लें

इसके बाद यही ज्ञान प्राप्त कर हम सदाचारी हो जाएं


हम प्रतिष्ठित होंगे तो इससे आचार्य जी की मानसिक भावनाओं को ऊर्जा और उत्साह मिलेगा

आचार्य जी प्रतिदिन हमें अपना बहुमूल्य समय देते हैं और हमें इतनी आसानी से ये सदाचार संप्रेषण उपलब्ध हो जाते हैं हमें इनका महत्त्व समझना चाहिये


कुछ समय के लिये हम अपने पास बैठने का प्रयास प्रतिदिन करते रहें



कठोपनिषद् में

यमराज और नचिकेता का कथानक अत्यन्त रोचक दिव्य शिक्षाप्रद है जो ज्ञान के उपासक हैं उनके लिये प्रकाश

  विन्दु है


ऋतं पिबन्तौ सुकृतस्य लोके गुहां प्रविष्टौ परमे परार्धे ।


छायातपौ ब्रह्मविदो वदन्ति पञ्चाग्नयो ये च त्रिणाचिकेताः ॥ १॥



 जीवात्मा के रूप में परमात्मा 

गुप्त रूप से शरीर में विद्यमान हैं और दोनों ही मोक्ष अवस्था में सत्य स्वरूप हैं   ब्रह्म ज्ञानी इन दोनों को भिन्न ही मानते हैं।



अशब्दमस्पर्शमरूपमव्ययं तथाऽरसं नित्यमगन्धवच्च यत् ।


अनाद्यनन्तं महतः परं ध्रुवं निचाय्य तन्मृत्युमुखात् प्रमुच्यते ॥ १५॥


 ब्रह्म का कोई विषय नहीं है, वह स्पर्श रहित है, रूप विकार से भी रहित है, अनादि अनन्त है, प्रकृति से भी सूक्ष्म है, निश्चल है, उस को जानकर मनुष्य मृत्यु के मुख से छूट जाता है और मोक्ष प्राप्त कर लेता है।



निराशा हताशा चिन्ता आदि ही मृत्यु है इसलिये शरीर से कुछ देर अलग होने का प्रयास ध्यान शवासन आदि से किया जा सकता है



और जब हम सांसारिक प्रपंचों में उलझते हैं तो ध्यान उधर से हट जाता है

आचार्य जी की निम्नलिखित कविता से चिन्तन करें कि हम कहां आ गये हैं


 कविता  पूरा देश मसान हो गया


धन साधन सुविधा के वन में हर घर का इन्सान खो गया

ऐसा जादू किया किसी ने पूरा देश मसान हो गया ।।


सम्बन्धों की रस्म अदाई

हूल रही भीतर तनहाई

धर्म अर्थ के हुआ हवाले 

सच पर जड़े हुए हैं ताले 

 सुख के लिए स्वत्व का तर्पण,

 दैनिक कर्म विधान हो गया | |१ | |


 ऐसा जादू.....


भाषा, भूषा वेश पराया

 प्रेम और आवेश पराया 

 घर के चूल्हे हुए विरागी

माँ का दूध हो गया दागी 

त्याग” कोष का शब्द, 

देश का चिन्तन अर्थ प्रधान हो गया | |२।।

 ऐसा जादू......


 ध्यान योग आयात हो रहा 

स्वत्व लुप्त चैतन्य सो रहा  

स्वारथ पगी प्रवचनी भाषा

बदल गयी तप की परिभाषा 

सत्य सनातन सदाचरण का,

आज नया अभिधान हो गया | |३। |


ऐसा जादू.....


प्रेम वासना का प्रहरी है

 मानवता अंधी-बहरी है

बचा नहीं कुछ अपना जैसा

काबिज हुआ सभी पर पैसा

आकर घिरी अमावस,

लेकिन कहते लोग विहान हो गया | ।४ | |


ऐसा जादू....


बेवश लोक, तन्त्र है हावी

भय से काँप रही है भावी 

पेट हो गया पूरा जीवन

दूषित हुआ प्रगति का चिन्तन

कैसे  कहूँ देश का अपना,  

अलग स्वतंत्र विधान हो गया ll 5ll

ऐसा जादू.....