अर्जुन कर्म न त्यागिये , चाहे उसमें दाग।
दोष रहे हर काम में, धुँआ ढकता आग ll
प्रस्तुत है कुटुम्बव्यापृत आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 12 अगस्त 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
सार -संक्षेप 2/14
दो विषय धर्म और अध्यात्म गूढ़ तो हैं लेकिन प्रायः चर्चा में रहते हैं
धर्म अर्थात् करणीय कार्य जैसे लोकधर्म, समाजधर्म, राष्ट्रधर्म, परिवारधर्म आदि
किसी दूरस्थ स्थान पर जब हम प्रायः जाते हैं तो अभ्यास के कारण हमें समय और दूरी का पता ही नहीं चलता इसी तरह जीवन की दूरी और समय है यह अध्यात्म का एक रहस्यात्मक विषय है समय और दूरी का सामञ्जस्य जिनके साथ जितना अधिक हो जाता है वो जीवन को उतनी ही सहजता से लेते हुए संसार सागर को पार कर लेते हैं
इस अभ्यास के सम्बन्ध में गीता में श्लोक है
सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।
सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।
सहज अर्थात् जो साथ में उत्पन्न हुआ है
जन्म हुआ है तो प्राण वायु का संचरण हो रहा है लेकिन सहज रूप से प्राण वायु का संचरण हो रहा है तो हमें पता ही नहीं चलता
इसी प्रकार इज्जत भी मनुष्य का सहज उत्पन्न भाव है
आचार्य जी ने सहजता के संबन्ध में कई उदाहरण दिये
इस सहजता की स्पष्टता हमारे अन्दर जितनी होगी जीवन में समस्याओं को सुलझाने में हम उतना ही सहज हो सकेंगे
समस्याओं में हम जितना परेशान होंगे चिन्ता करेंगे उतनी ही शरीर में विकृतियां उत्पन्न होंगी
सहजता के साथ यदि हम अध्यात्म की अनुभूति करने लगें तो आनन्द ही आनन्द है
व्यर्थ की चर्चाओं में समय खराब न करें देश में जगह जगह सुरक्षा कवच होंगे तो देश और अधिक जाग्रत हो जायेगा जो संपूर्ण विश्व के हित में होगा
इसके अतिरिक्त
आचार्य जी ने माली काका का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें