13.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 13अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  ज्ञानोद्ग्रन्थ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक  13अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/15


स्थान :गाजियाबाद


इसमें संदेह नहीं कि 

तन, मन, विचार का हमारा अपना संसार बाह्य संसार से सामञ्जस्य स्थापित कर लेता है

संपूर्ण सृष्टि में भी एक सामञ्जस्य है अनुसंधान करने पर ऋषियों ने पाया कि जो अणु परमाणु में है वही ब्रह्माण्ड में है तो उन्होंने कह दिया


यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे



जो कुछ सूक्ष्म जगत में है वही स्थूल जगत में है


हमारे अन्दर सूक्ष्म,स्थूल,भाव, विचार, चिन्तन है विचारशील व्यक्ति को यह भी पता रहता है कि शरीर का विनाश निश्चित है


शरीर के कमजोर होने पर यदि विचार कमजोर होते हैं तो हम असहाय हो जाते हैं


शरीर कमजोर होने पर भी हमारे विचार  सुदृढ़ रह सकते हैं यदि हम शरीर को सही तरह से चलाने का अभ्यास करेंगे अब हमें कितना भोजन करना चाहिये कितना व्यायाम करना चाहिये यह देखना होगा


हताश होकर अपने विरोधी न बनें इस पर भी ध्यान देना होगा क्योंकि आत्मविरोध परमात्मविरोध ही माना जाना चाहिये

जल में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं किया जाता 

परमात्मा पालक पोषक भी है और नियन्त्रक भी है


त्वमेव माता च पिता त्वमेव। 

त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।। 

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव।

 त्वमेव सर्व मम देवदेव।।


परमात्मा ही सब कुछ है परमात्मा  हमारे अन्दर भी बैठा है  हमें अनुभूति रहे कि हमारे इस शरीर मंदिर में परमात्मा की मूर्ति विद्यमान है और वो चाहती है कि उसकी पूजा उपासना हो


यदि  उसकी पूजा उपासना नहीं करते हैं तो हम अन्याय करते हैं


ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।


ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।।4.24।।


यह ब्रह्मत्व भाव शंकराचार्य का दर्शन है अन्य दर्शन भी हैं हमारे यहां अन्य प्रकार की संस्कृतियां भी हैं अन्य मत भी हैं इसलिये हम कहते हैं


है देह विश्व आत्मा है भारत-माता

सृष्टि-प्रलय-पर्यन्त अमर यह नाता ॥


हम भारत माता की पूजा करते हैं दीनदयाल जी का एकात्म मानववाद प्रसिद्ध है

हम भी इस तरह के श्रेष्ठ विचार उत्पन्न कर सकते हैं लेखन कर सकते हैं

अपनी संस्कृति की रक्षा के लिये उपाय खोज सकते हैं


हमारी संस्कृति को नष्ट करने वाले राक्षसों से निपटने के लिये हमें संगठित होने का महत्त्व समझना चाहिये