16.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 16 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है मन्दन -पात्र आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 16 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/18



हमारी एक अध्यात्मवादी वैश्विक वैदिक परम्परा है जिसमें हम अपने राष्ट्र को विश्वात्मा मानते हैं


इस आधार पर अपने मन में अपनी संस्कृति की श्रद्धापूर्वक धारणा बनाकर हम इसकी रक्षा के लिये कृतसंकल्प रहते हैं


कल अत्यन्त उत्साह उमंग के साथ मनाये गये  स्वतन्त्रता दिवस की आचार्य जी ने चर्चा की

हम स्वतन्त्रता में सचेत रहकर आनन्द उठाते हैं अभी जितनी स्वतन्त्रता है उसका विस्तार और संस्कार होना बाकी है


पन्द्रह अगस्त का दिन कहता, आजादी अभी अधूरी है।

सपने सच होने बाकी हैं, रावी की शपथ न पूरी है॥



इसकी अनुभूति और संस्कार के लिये अपनी शिक्षापद्धति पर चिन्तन करने की आवश्यकता है


अपने परिवारी जीवनों में गहराई से अध्ययन चिन्तन मनन कर  युगानुकूल व्यवस्थाएं बनानी होंगी


यथास्थिति में तो नहीं लौट सकते लेकिन आंखें मूंदकर किसी भी राह पर चल भी नहीं सकते


इसलिये अत्यन्त सचेत और जाग्रत रहने की भी आवश्यकता है


*राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष* हमारा लक्ष्य है


 व्यक्तित्व के लिये एक छन्द है


रे रे चातक ! सावधानमनसा मित्र ! क्षणं श्रूयताम् ।

अम्भोदा बहवो हि सन्ति गगने सर्वेSपि नैतादृशाः ।।

केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसुधां गर्जन्ति केचिद् वृथा ।

यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः ll


चातक  मित्र सुनो- गगन में हर प्रकार के बादल हैं, किन्तु सभी बादल एक समान नहीं होते ,  कुछ पानी वाले बादल हैं वे संपूर्ण पृथ्वी को  गीला कर देते हैं, शेष गरजने वाले बादल हैं वे गरजते हैं और चले जाते हैं, अतः तुम हर बादल से बरसने की भीख न मांगो


अन्योक्ति भाव स्पष्ट है अनेक बार भ्रम में बिना पात्रता देखे हम लोग लोगों से श्रद्धा भक्ति निवेदित करने लगते हैं यह सही नहीं है हमारी शिक्षा में गुलामी का भाव भर दिया गया जीविका चलाने के लिये हम शान्त हो जाते हैं भ्रष्टाचार सही लगने लगता है भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने पर कष्टों का सामना करना पड़ता है और कष्ट सहने की क्षमता पात्रता है नहीं


कष्ट सहने की क्षमता और पात्रता शिक्षा का मूल मन्त्र है हमारे यहां गुरुकुलों की वैदिक शिक्षा का प्रारम्भ ही कष्टों से था


आचार्य जी ने कुछ अन्य चीजों से भी सावधान रहने के लिये कहा जिससे हमारी मेधा कुण्ठित न हो


आत्मचिन्तन, मन्थन, संगठन, समाजोन्मुखी राष्ट्रोन्मुखी योजनाएं,भारतीय संस्कृति और शिक्षा पर विचार, लेखन, प्रकाशन,आयोजन,सजातीय संस्थाओं से संपर्क की आवश्यकता है इस ओर हम ध्यान दें स्वावलंबन का सही अर्थ समझें


उन्नाव के विद्यालय में आगामी 28/29/30 अगस्त को होने वाले त्रिदिवसीय  वार्षिक समारोह के बारे में सूचना देते हुए आचार्य जी ने दोहराया कि युगभारती के लिये शिक्षा की प्रयोगशाला के रूप में यह विद्यालय उपयुक्त है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अरविन्द तिवारी जी भैया पुनीत श्रीवास्तव जी का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें