21.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 21अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है परमर्षि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 21अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/23



बाल कांड में


जिन्ह के यह आचरन भवानी। ते जानेहु निसिचर सब प्रानी॥

अतिसय देखि धर्म कै ग्लानी। परम सभीत धरा अकुलानी॥2॥


लोगों की धर्म के प्रति  अतिशय ग्लानि  देखकर सर्वसहा अर्थात् सब कुछ सहने वाली धरती मां अत्यन्त भयभीत एवं व्याकुल हो गई


गिरि सरि सिंधु भार नहिं मोही। जस मोहि गरुअ एक परद्रोही।

सकल धर्म देखइ बिपरीता। कहि न सकइ रावन भय भीता॥3॥



धेनु रूप धरि हृदयँ बिचारी। गई तहाँ जहँ सुर मुनि झारी॥

निज संताप सुनाएसि रोई। काहू तें कछु काज न होई॥4॥


 सुर मुनि गंधर्बा मिलि करि सर्बा गे बिरंचि के लोका।

सँग गोतनुधारी भूमि बिचारी परम बिकल भय सोका॥

ब्रह्माँ सब जाना मन अनुमाना मोर कछू न बसाई।

जा करि तैं दासी सो अबिनासी हमरेउ तोर सहाई॥


धरनि धरहि मन धीर कह बिरंचि हरि पद सुमिरु।

जानत जन की पीर प्रभु भंजिहि दारुन बिपति॥184॥


बैठे सुर सब करहिं बिचारा। कहँ पाइअ प्रभु करिअ पुकारा॥

पुर बैकुंठ जान कह कोई। कोउ कह पयनिधि बस प्रभु सोई॥1॥


जाके हृदयँ भगति जसि प्रीती। प्रभु तहँ प्रगट सदा तेहिं रीती॥

तेहिं समाज गिरिजा मैं रहेऊँ। अवसर पाइ बचन एक कहेउँ॥2॥


हरि ब्यापक सर्बत्र समाना। प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना॥

देस काल दिसि बिदिसिहु माहीं। कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाहीं॥


परमात्मा सर्वत्र विद्यमान है और प्रेम से वे हर जगह प्रकट हो जाते हैं 

यह प्रेम क्या है?

प्रेम कोई संकुचित विधि और व्यवस्था नहीं है हमारी इन्द्रियों को ही जो सुख दे वही प्रेम नहीं है 

प्रेम तो बहुत व्यापक है



यह प्रेम जहां पशु पक्षी जड़ चेतन आदि से हो जाता है वहां ऋषित्व जाग्रत हो जाता है वह  भावसंपन्न, शक्ति संपन्न,तेजोमय  ऋषित्व का प्रभाव समाज अनुभव करता है

और यह हमारे देश की परम्परा रही है इसकी अनुभूति हमारे घर परिवार समाज हर जगह व्याप्त है

हमें इसकी अनुभूति होनी चाहिये कि जो करता है सब परमात्मा करता है और परमात्मा अच्छा ही करता है लेकिन निष्क्रिय होकर बैठे नहीं


यह अनुभव जिस प्रकार जितना व्यापक होकर अभ्यास में आ जाता है उस प्रकार ही हमारे भाव हमारे विचार और हमारी क्रियाएं होने लगती हैं


हमें भी इसका अभ्यास हो जाये आचार्य जी यही चाहते है


इसी भाव विचार के साथ जब हम अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं तो यह आनन्द का विषय ही होता है

परमात्माश्रित होकर समाज को ही परमात्मा का स्वरूप मानकर सामाजिक कार्यों को आनन्दपूर्वक करते चलें यह भी इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य है



प्रधानमन्त्री मोदी के माध्यम से समाज को प्राप्त उपलब्धियां यह मुख्य विषय था भाजपा के तत्वावधान में उन्नाव में कल आयोजित एक कार्यक्रम का जिसमें आचार्य जी मुख्य वक्ता थे



इस तरह के अवसरों पर आचार्य जी  उपस्थित समूह में प्राणिक ऊर्जा का संचार कर देते हैं जिससे उस समूह के व्यक्तियों में अपने दायित्व के बोध हेतु उत्साह जाग्रत हो जाता है