प्रस्तुत है उत्पथ -अरि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 23 अगस्त 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
सार -संक्षेप 2/25
इसमें कोई संशय नहीं कि ये सदाचार संप्रेषण हमारे लिये उपादेय रहते हैं और आचार्य जी का यह अनवरत निर्बाध प्रयास अद्भुत है
इन सदाचार संप्रेषणों का मूल रूप से यही उद्देश्य माना जाना चाहिये कि अपना मार्ग सुधर जाये इस कारण चिन्तन मनन निदिध्यासन ध्यान पूजन अध्ययन लेखन स्वाध्याय आदि आवश्यक है
निः संदेह राष्ट्रार्पित जीवन, समाजोन्मुखी जीवन, आत्मार्पित चिन्तन की ओर उन्मुखता यदि हमारी होती है तो यह उद्देश्य सफल है अर्थात् सदाचार हमारे लिये सदुपयोगी हो रहा है
निम्नांकित काव्य अंशों में आचार्य जी ने कुछ अपने भाव व्यक्त किये हैं
दुनिया औरों को सदाचार सिखलाती है
पर स्वयं असंयम कदाचार की अभ्यासी
हो गई दशा वैसी ही अजब जमाने की
जैसे प्रवचन करता कलयुग का संन्यासी
हर ओर सुधार सभाओं की गहमागहमी
पर स्वयं सुधरने को कोई तैयार नहीं
अपने की पहचान खो गई सबकी
इसलिये सभी को लगता कोई नहीं सही
......
यह जीवन सुख दुख शोक हर्ष उत्थान पतन की परिभाषा
क्षणभंगुर हो यह भले मगर
अन्तर्मन में केवल आशा
जीवन विराग की करुण कथा
संघर्षों भरी जवानी है
जीवन मरुथल की अबुझ प्यास गंगा का शीतल पानी है
जीवन अलबेला रंगमंच अभिनय अभिनेता एक रूप
और कल्पना कथा संगीत वाद्य सब मिल बनते मोहक स्वरूप
पर वेश उतरते ही दुनिया फिर वैसी वैसा खांव खांव
सुरभित प्रसून भ्रमरावलियां विलुप्त फिर से वह कांव कांव
कोरोना काल में लिखी कविता
हम चलेंगे साथ तो संत्रास हारेगा
पूर्व फिर से अरुणिमा आभास धारेगा
हम सृजन पर ही सदा विश्वास रखते थे
यजन में ही जिंदगी.........
असीमित सद्विचार अप्रतिम काव्य कौशल सुस्पष्ट भाषा अथाह बुद्धि की बानगी तो हम इन संप्रेषणों में देख ही रहे हैं फिर भी यदि किसी भी तरह के संशोधन की आवश्यकता हो तो उस पर आचार्य जी द्वारा विचार किया जा सकता
हैं