प्रस्तुत है प्रसृत आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26 अगस्त 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
सार -संक्षेप 2/28
गीता के सोलहवें अध्याय में व्यावहारिक, नैतिक और आध्यात्मिक विचारों को दैवी सम्पदा और उनके विपरीत विचारों को आसुरी सम्पदा के रूप में गहनता के साथ प्रस्तुत किया गया है।
काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विताः।
मोहाद्गृहीत्वासद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रताः।।16.10।।
कभी पूर्ण न होने वाली कामनाओं पर आश्रित होकर दम्भ, अभिमान और मद में चूर रहने वाले तथा अपवित्र व्रत को धारण करने वाले (जैसे आजकल के प्रेत कहते हैं हमारे साथ इतने लोग संयुत हो जायेंगे तो उनको हम मार डालेंगे ) लोग मोहांध होकर दुराग्रहों को धारण करके इस संसार में भ्रमण करते रहते हैं।
चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिताः।
कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चिताः।।16.11।।
वे मृत्युपर्यन्त रहने वाली अपरिमेय चिन्ताओं का आश्रय लेने वाले, पदार्थों को एकत्र करने और उनका भोग करने में लिप्त तथा 'जो कुछ है, वह इतना ही है' -- ऐसा निश्चय करने वाले होते हैं।
आशापाशशतैर्बद्धाः कामक्रोधपरायणाः।
ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्चयान्।।16.12।।
वे आशा के अनेक पाशों से बँधे हुए मनुष्य काम क्रोध में लिप्त होकर पदार्थों का भोग करने के लिये अन्यायपूर्वक धन को संचित करने का प्रयास करते रहते हैं।
इसके विपरीत त्याग वृत्ति के लोग सफलता असफलता दोनों में शांत रहते हैं विपरीत परिस्थितियों में शान्त रहने का अवसर खोज लेते हैं
इन सदाचार वेलाओं के माध्यम से हम भी दिन भर शांति के साथ रहने का प्रयास कर सकें आचार्य जी इसके लिये नित्य हमें अपना बहुमूल्य समय देते हैं
हम अनुभव कर सकें कि ईश्वर हमारे हृदय में स्थित है और हम भ्रम और भय मुक्त हो सकें यही प्रेरणा तो देते हैं ये सदाचार संप्रेषण लेकिन इसके लिये हमें ध्यान धारणा संयम सद्संगति स्वाध्याय उचित खानपान का भी ध्यान रखना होगा और हमें सचेत भी रहना होगा कि कुपात्रों के चक्कर में पड़कर हम अवगुणों को धारण न कर लें
हम लोगों का स्वभाव है दैवी संपदा इसलिये हमें उसी में आनन्द आता है हम लोगों को लगातार प्रयासरत रहना चाहिये कि समाज को भी हम दैवी संपदा के अनुकूल चलाएं
सदाचारी व्यक्तियों का स्वभाव है कि वह भविष्य की योजनाओं से संयुत रहता है हम अपने संगठन युगभारती के कार्यक्रम करते रहते हैं हर कार्यक्रम एक उद्देश्य को लेकर किया जाता है हमारे स्वभाव में सफल आयोजनों से संतुष्टि और असफलताओं की समीक्षा होती है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने टी राजा, भैया आकाश मिश्र भैया प्रकाश शर्मा, एक सज्जन डा राम कुमार, कवि अतुल का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें