प्रस्तुत है निदर्शिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 28 अगस्त 2022
का सदाचार संप्रेषण
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https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
सार -संक्षेप 2/30
स्मृतियां दो प्रकार की होती हैं कुछ स्मृतियां हम भूल जाना चाहते हैं लेकिन कुछ स्मृतियां ऐसी होती हैं जिन्हें हम संजो कर रखना चाहते हैं संसार के साथ जो भाव जगत संयुत है उसमें यही स्वरूप परिलक्षित होते हैं
दर्शन में इसका बहुत गहन चिन्तन और विस्तृत विवरण है
आचार्य जी हम लोगों का नित्य मार्गदर्शन करते हैं ताकि अध्ययन ध्यान चिन्तन मनन स्वाध्याय के प्रति हमारी रुचि में वृद्धि हो पाठ करते समय हमारा उच्चारण शुद्ध हो लेखन में भी अशुद्धियां न हों हम जानते हैं कि शिक्षा उच्चारण का शास्त्र है
हम सभी क्षमतावान हैं हमारे पास शक्ति है बुद्धि है हममें से कोई भी द्रष्टा विद्वान यशस्वी तपस्वी पूर्णज्ञ हो सकता है
हमें जानना चाहिये कि क्या संसार है कैसे सृष्टि रची गई आत्मा क्या है हमारा धर्म क्या है
गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।
विवस्वान् मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्।।4.1।।
मैंने इस ज्ञाननिष्ठारूप अविनाशी योग को सूर्य भगवान् से कहा था। फिर उन्होंने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा।
कुछ ऐसे नासमझ लोग हैं जो परम्परा के प्रति दुर्भावना रखते हैं आज की दुनिया में जीना चाहते हैं इससे उनकी क्षमताएं कुण्ठित होती हैं वे मशीन बन जाते हैं कंट्रोल दूसरे के हाथ में हो जाता है
आज की शिक्षा विकृत हो गई है जो केवल नौकरियां प्रदान करती है दिशा से भ्रमित हो गये हैं हम
इसीलिये आत्मबोध को जाग्रत करने की आवश्यकता है
आचार्य जी अनेक सांसारिक प्रपंचों में उलझने के बाद भी हमारी भावनाओं को उत्साहित और उत्तेजित करने का नित्य प्रयास करते हैं तो हमारा भी कुछ कर्तव्य है
किसी भी परिस्थिति में यदि आत्मानन्द की अवस्था में हम रहना चाहते हैं तो अपनी परम्परा संस्कृति से संयुत रहें साधना स्वाध्याय संयम संगठन के साथ भी संयुत रहें
आज से उन्नाव विद्यालय में कार्यक्रम प्रारम्भ हो रहे हैं आप लोग अधिक से अधिक संख्या में वहां पहुंचें