प्रस्तुत है ज्ञान -प्रशत्त्वन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 8 अगस्त 2022
का सदाचार संप्रेषण
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सार -संक्षेप 2/10
समाज की समस्याओं का उद्भव शिक्षा के अभाव से या शिक्षा के विकारों के कारण होता है
और समाज का सुधार एवं संस्कार शिक्षा के माध्यम से होता है
कहने का तात्पर्य है कि शिक्षा ही समस्याओं का कारण भी है और निवारण भी है
इसी कारण शिक्षा पर भारत देश में परिपूर्ण विचारणा धारणा की गई है और शिक्षक उसी को माना गया जिसमें मनुष्यत्व की पूर्णता दृष्टिगोचर हुई
पूर्ण मनुष्य के लिये चार पुरुषार्थों धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की आवश्यकता है, मनु इस पुरुषार्थचतुष्टय के प्रतिपादक हैं।
अनुशासित होकर चलना ही धर्म है यह प्रदर्शन न होकर दर्शन है पशुता से इतर यह मनुष्यत्व की अनुभूति कराता है यह उपासना की पद्धति न होकर विराट् स्वरूप वाली जीवन पद्धति है
भौतिक जीवन से संबन्धित विचार और क्रियाएं अर्थ है
अर्थोपार्जन करना लेकिन धर्म से विमुख होकर नहीं
काम अर्थात् कामनाएं एक स्तर तक ही और मोक्ष मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है
संसार में आये समस्याओं से जूझे और फिर बिना भय के शरीर से मुक्त होना मोक्ष है
यह इस राष्ट्र का शैक्षिक स्वरूप है
जो अभावों की अनुभूति करता है वह शिक्षित नहीं है
मोक्ष आनन्द है
स्थिति ऐसी हो कि भीतर से ललचाएं नहीं और बाहर से उसे व्यक्त भी न करें
और इसके अभ्यास की आवश्यकता है और यह अभ्यास साथ साथ करें
ॐ सहनाववतु
सहनौभुनक्तु ।
सह वीर्यं करवावहै
तेजस्विनावधीतमस्तु ।
मा विद्विषावहै
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ।
द्वेष न रखें
फिर त्रिविध तापों की शान्ति होगी
आधुनिक शिक्षा में महर्षि दयानन्द,महर्षि अरविन्द,गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर, अनेक वैदेशिक लोगों के विचार हैं
हम पूरी वसुधा को ही अपना कुटुम्ब मानते हैं इस कुटुम्ब का मुखिया परमपिता परमेश्वर है यह चिन्तन हमारी शिक्षा ने ही किया है
यह शिक्षा का स्वरूप है शिक्षा कमाने के लिये नहीं होती उसके लिये प्रशिक्षण होता है
हमारे देश में बाहर से बहुत से लोग आये हमने उन्हें आत्मसात् किया लोभ लालच जिज्ञासा से आये
हमारे यहां वो सब समा गये लेकिन पाचन शक्ति की भी सीमा होती है हमारी वैचारिक भावनाएं हमें ही अद्भुत लगने लगीं हमारी शिक्षा को विकृत करने के बहुत से प्रयास हुए
शिक्षा नौकरी करने वाली हो गई व्याकुलता के भंवर में घुमाने वाली हो गई
तत्कर्म यन्न बन्धाय सा विद्या या विमुक्तये।
आयासायापरं कर्म विद्यऽन्या शिल्पनैपुणम्॥
विद्या वही है जो मुक्ति के लिये है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने
राही राह चला चल अविचल मंजिल तेरी दूर नहीं.....सुनाई
आचार्य जी दिल्ली मथुरा चित्रकूट की यात्राओं पर जायेंगे ऐसा उन्होंने सूचित किया