9.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 9 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है आप्त आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 9 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/11


सदाचार संप्रेषण का यह समय ऐसा है जिसमें हमें सदैव सकारात्मक सोच रखनी चाहिये जीवन में सफलताएं कैसे प्राप्त करें इस पर विचार करना चाहिये समाज और राष्ट्र का चिन्तन करना चाहिये



मनुष्य, संसार, सृष्टि, सृष्टिकर्ता,प्रकृति आदि पर भारत में बहुत गहन चिन्तन हुआ है और आश्चर्यजनक तो यह है कि इस चिन्तन के विविध स्वरूप सरल या क्लिष्ट भाषा में जन जन तक व्याप्त हैं


हम परमात्मा के अंश स्थान स्थान पर अपना प्रकाश फैला रहे हैं हमारी सबसे बड़ी  यही नैतिकता कर्तव्यपरायणता है कि हम अपने दीप को तब तक बुझने न दें जब तक तेल की एक बूंद भी शेष है बाती का एक अंश भी शेष है


डा ज्योति कुमार गुप्त 1990 ने एक अद्भुत व्यावहारिक सदाचार की मिसाल पेश की है👇



लघु सत्य कथा - मां

 


आज से करीब दस वर्ष पहले जब मैं ( डा ज्योति कुमार) शाम को अपनी काकादेव क्लिनिक पर पहुंचा तो देखा कि एक मैले कपड़े पहने गांव की एक महिला दो बच्चों को लिए मेरा इंतजार कर रही थी। उसका ४ माह का बच्चा उसकी गोद में था जो सीरियस लग रहा था। उस महिला ने बताया कि वो सुल्तानपुर के पास किसी गांव में रहती है और अभी पंद्रह दिन पहले ही मजदूरी करने किसी ठेकदार के बुलाने सपरिवार कानपुर आई है और उसके छोटे ४ माह के बच्चे को सुबह तड़के से १५ से २० दस्त और ५ उल्टियां आ चुकी हैं। मैंने बच्चे को देखा तो बच्चा सीवियर डिहाइड्रेशन में था उसकी नब्ज हल्की चल रही थी। उसने सुबह से पेशाब भी नहीं किया था। मैंने बताया कि बच्चा काफी सीरियस है इसे तुरंत भर्ती करना होगा।  मैंने उसकी गरीबी हालत को समझते हुए उसे हैलट अस्पताल में बच्चों के अस्पताल में भर्ती की सलाह दी।  मैंने  उसको एक नर्सिंग होम में भर्ती के लिए भेज दिया और खुद भी पहुंच कर इलाज शुरू करवा दिया।

अगले दिन मां संतुष्ट दिखी कि अब बच्चा चैतन्य है। बच्चे के पिता पैसे की व्यवस्था करने गए हैं।

जब अगले दिन मैं अस्पताल में बच्चे को देखने गया  तो खबर सुनकर मैं चौक पड़ा , "बच्चे की मां अस्पताल में भर्ती बच्चे को बेचना चाहती है !" 

मैं  मरीज के पास पहुंचा और पूछा कि ये मैं क्या सुन रहा हूं? मां आंखों में आंसू भरे भरभराई आवाज में बोली  कि जो भी अस्पताल की फीस भर दे, मेरे बच्चे को ले जाए। मेरा बच्चे की जान बच गई मेरे लिए यही बहुत है। 

 मां की ममता और त्याग को सच्चे हृदय से नमन किया। फिर बोला कि क्या डॉक्टर परिवार नहीं हो सकता है वो भी परदेस में। जाओ तुम्हें कुछ भी नहीं जमा करना है। नर्सिंग होम ने भी एक पैसा फीस लेने से मना कर दिया।  मां बाप बोले साहब उस ठेकेदार के पास तो अब नहीं जायेंगे।  मैंने डिसचार्ज बनाने के साथ ही उनके हाथ में कुछ धन रखा और अपने स्टाफ को स्टेशन तक छोड़ आने के लिए साथ भेज दिया


हमने देखा एक ओर संसार की पीड़ा संसार का भोग है और दूसरी ओर भाव है

 भाव की परमात्मा रक्षा करता है भोग को काटता है

मार्ग दिखाता है


भावों से संपृक्त इस सत्यकथा पर अपनी अभिव्यक्ति प्रकट करने के लिए सर्वथा उपयुक्त शब्द नहीं हैं



आचार्य जी की कलम ने  एक से बढ़कर एक बेहतरीन रचनाएं दी हैं कविता हिंदी साहित्य की वो विधा है जो सुन्दर से सुन्दर विचार को कम शब्दों में कहना जानती है।



इन्हीं रचनाओं में एक 

कविता है 

कविता मन का विश्वास भाव की भाषा है....



एक और कविता है


पद और प्रतिष्ठा सुख सुविधा के पीछे दीवानी दुनिया.....



दुनिया इस प्रकार की है लेकिन भारत को तो दुनिया के सामने एक आदर्श प्रस्तुत करना है भारतवर्ष के इतिहास को हमें देखना होगा कि हम कौन हैं

इस पर आचार्य जी के व्यक्त भाव इस तरह से हैं


जागो भारत जागो महान....



हमारा वास्तविक इतिहास कितना विलक्षण रहा है इसकी दुनिया में कोई मिसाल नहीं है इसे हमें स्वयं तो समझना ही होगा हमारा भावी भविष्य (भावी  पीढ़ी ) भी जानें इसका प्रयास हमें करना होगा


हमारे ऋषियों का संविधान वैश्विक संविधान है इसी के आधार पर हम कहते हैं कि संपूर्ण विश्व को आर्य बनाएंगे

पूरी वसुधा ही हमारा कुटुम्ब है


इसके लिये परस्पर आत्म विश्वास,आत्मीयता, प्रेम, आत्मशक्ति, आत्मप्रेरणा और आप्तप्रेरणा  से भरा रहना होगा 

हमारी शक्ति बुद्धि भक्ति फलप्रद हो इसकी परमात्मा से प्रार्थना करें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया आलोक भैया संदीप शुक्ल का नाम क्यों लिया आचार्य जी दिल्ली कब जा रहे हैं जानने के लिये सुनें