1.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 1 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है कृच्छ्र्प्राण-रक्षक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 1 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/34


यह भावमय संसार है जो व्यक्ति इस संसार की भावात्मकता को नजरअंदाज करके केवल इसके उपभोग पर ही ध्यान केन्द्रित करता है उनमें मनुष्यत्व का अभाव रहता है यद्यपि रूप से वह मनुष्य है

ऐसे मनुष्यों की बुभुक्षा इतनी अधिक होती है कि वो सर्वत्र अपना विस्तार करना चाहते हैं, वे चाहते हैं कि लोग उनके दबाव में रहें

लोगों को वे पराधीन बनाना चाहते हैं

हमारी संस्कृति अधीनता को नहीं स्वीकारती


आकर चारि लाख चौरासी। जाति जीव जल थल नभ बासी।।

सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।।


स्वेदज, अण्डज, उद्भिज्ज, जरायुज आदि से भरे हुए इस सारे जगत को श्री सीताराममय जानकर मैं  प्रणाम करता हूं


कल दुःखद सूचना मिली कि भइया राहुल मिठास बैच 89 (ADCP कानून कानपुर) की पूजनीय माताजी  गोलोक प्रस्थान कर गईं


इससे पूर्व 29/08/2022  को 93 बैच के भैया अमित गुप्त जी की माता जी भी नहीं रहीं थीं


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि भैया राहुल भैया अमित गीता का दूसरा अध्याय पढ़ें


हरिद्वार या प्रयागराज में स्नान करें


इससे अपनी भावनाएं जो कामनाओं के कारण लगी हुई होती हैं उनका प्रक्षालन होता है


फिर हम छोटी भावना को बड़ी भावना से जोड़ते हैं

भारत को हम अपनी मां मानते हैं पृथ्वी को अपनी मां मानते हैं व्याप को बढ़ाते हुए संपूर्ण सृष्टि के रचनाकार पालनकर्ता प्रलयकर्ता को पिता कहते हैं प्रकृति को मां कहते हैं


इस प्रकार संपूर्ण सृष्टि में जब हमारा चिन्तन व्याप्त हो जाता है तो हमारे छोटे परिवार का दुःख सुविस्तृत होकर विचारमय होकर धीरे धीरे दुःख से किसी कर्तव्य की ओर हमें उन्मुख कर देता है


मां तो जीवन भर याद रहती है मां के कथन जीवन भर याद रहते हैं


कुछ ऐसे भी तथाकथित स्वार्थी  पुत्र होते हैं जो मांओं को वृद्धाश्रम   छोड़ आते हैं


मां  (भारत मां भी )के प्रति कुण्ठित भाव रखने वाले प्रेत हैं

प्रेत योनि से हमें बचना चाहिये इसके लिये बलपूर्वक विलुप्त कर दिये गये सांस्कृतिक अधिष्ठान वाले ग्रंथों को ध्यानपूर्वक हम पढ़ें पढ़ाएं


अंग्रेजी भाषा की गुलामी सभ्यता की गुलामी से हमें बचना चाहिये


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कवि सुरेश जी की एक कविता की चर्चा की