10.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 10 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है परार्थ -घटक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 10 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/43



अष्टावक्र गीता अद्वैत वेदान्त का अद्वितीय ग्रन्थ है जिसमें ऋषि अष्टावक्र और राजा जनक के बीच संवाद  है। भगवद्गीता, उपनिषद और ब्रह्मसूत्र की ही तरह यह अमूल्य ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में ज्ञान, वैराग्य, मुक्ति एवं समाधिस्थ योगी की दशा का बहुत विस्तार से वर्णन है।


ऐसा सुनने में आता है कि  रामकृष्ण परमहंस ने भी इसी ग्रंथ को नरेंद्र को पढ़ने को कहा था जिसके पश्चात वे उनके शिष्य बने


 ग्रंथ का प्रारम्भ राजा जनक द्वारा पूछे गये तीन शाश्वत प्रश्नों से होता है।  ज्ञान कैसे प्राप्त होता है,मुक्ति कैसे होगी और  वैराग्य कैसे प्राप्त होगा?


इस ग्रंथ के अनुसार अध्यात्म जगत की तीन निष्ठाएं महत्त्वपूर्ण हैं ज्ञान कर्म और भक्ति


मनुष्यों में दो प्रकार के व्यक्तित्व होते हैं अन्तर्मुखी और बहिर्मुखी


अन्तर्मुखी के लिये ध्यान का मार्ग अनुकूल है जब कि बहिर्मुखी के लिये कर्म और भक्ति का मार्ग


ध्यान के साथ धारणा अवश्य होगी और ध्यान धारणा से समाधि की ओर उन्मुखता होगी


बहिर्मुखी के लिये ज्ञान का बोध और यह मार्ग प्रायः उसे कठिन लगता है


अष्टावक्र कहते हैं अक्रिया ही विधि है बोध और स्मरण मात्र ही पर्याप्त है


यदि यह भ्रान्तियां दूर हो जायें कि न मैं शरीर हूं न मन न बुद्धि न विचार तो यही मोक्ष है


मोक्ष मनुष्य के चित्त की एक अवस्था है और इसी से वह परमानन्द की अनुभूति करता है


भगवद्गीता में फल की कामना से रहित कर्म पर जोर दिया गया है


कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।


मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।


भगवान् कृष्ण का गीता उपदेश सांसारिक व्यक्तियों के लिये है और अष्टावक्र गीता मुमुक्षुओं के लिये



आचार्य जी एक लम्बे समय से इसी का प्रयास कर रहे हैं कि हम लोग संपूर्ण संसार का सत्य जानें और हम लोगों का समाजोन्मुखी और जीवन को एक दृष्टि देने वाला पुरुषार्थ जागे


आचार्य जी नित्य भावाभिव्यक्ति करते हैं और  इस संसार के सत्य को अवशोषित करते हुए अधिक से अधिक समय तक आनन्द की अवस्था में रहते हैं



अष्टावक्र गीता कहती है कि परमपिता परमेश्वर इस सृष्टि का रचयिता नहीं है उसकी अभिव्यक्ति है


हम लोग भी वाणी से कलाकृतियों से कर्मों से अभिव्यक्ति करते हैं लेकिन उतनी प्रभावशाली नहीं जितनी परमेश्वर की हैं क्योंकि हम उनके अंश हैं


  *आज अनन्त चतुर्दशी का प्रभात है भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा*


*प्रातः स्मरणीय, पथ प्रदर्शक,युग भारती के संस्थापक, प्रकाश स्तंभ, सतत राष्ट्र उत्थान के लिए समर्पित  भारतीय संस्कृति,दर्शन, सद्विचारों द्वारा हमें पोषित करने वाले  आचार्य जी का आज जन्मदिन है*

*आचार्य जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं* 



*युग भारती के सभी आत्मीय बंधुओं से निवेदन है  कि अपने जीवन के पुण्य का एक-एक अंश पूज्य आचार्य जी के स्वास्थ्य, उज्ज्वल भविष्य, मंगल जीवन के लिए समर्पित करें।*



आचार्य जी कहते हैं आत्मविस्तार संसार का आनन्द है लेकिन शंकाओं को मन में न आने दें पुरुषार्थ पर से विश्वास न उठने दें हम परमात्मा की अद्भुत कृति हैं इसलिये दैन्य भाव मन में न लायें