प्रस्तुत है टुण्टुकारि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 9 सितम्बर 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
सार -संक्षेप 2/42
युगभारती के सक्षम सुयोग्य समर्थ सदस्यों के प्रमाणिक प्रयासों से शिक्षा, चिकित्सा, प्रशासनिक आदि क्षेत्रों में आचार्य जी बहुत से लोगों की सहायता करते रहते हैं और प्रायः वे लोग लाभान्वित भी होते हैं
सांसारिक प्रपंचों के साथ पारिवारिक व्यक्तिगत समस्याओं के आने पर आचार्य जी व्याकुल नहीं होते हैं क्योंकि उन्हें परमात्मा पर पूर्ण विश्वास रहता है और परमात्मा उनकी सहायता भी करते हैं
ये सदाचार संप्रेषण गार्हस्थ्य को ऊर्जा प्रदान करते हैं संसार की समस्याओं को सुलझाने के लिये आत्मशक्ति प्रदान करते हैं
पावन गंगा अनन्त वर्षों से सतत बह रही हैं सूर्य देव अनन्त वर्षों से प्रकाश दे रहे हैं
जो इस सातत्य का अनुभव करता है वह रहस्यों से भरे इस संसार को थोड़ा बहुत समझ लेता है
इस सातत्य को हमारी संस्कृति ने बहुत संजोकर रखा है
एकात्म मानववाद के पुरोधा दीनदयाल जी मानव के सृष्टि और परमात्मा से संबन्ध पर व्यापक दृष्टिकोण रखते थे वे कहते थे व्यक्ति प्रकृति परमात्मा सब एक हैं
आचार्य जी ने दीनदयाल जी का उस्तरे से संबन्धित एक प्रसंग सुनाया
कभी उसका handle बदला कभी blade लेकिन वो पुराना का पुराना ही रहा
हम लोगों का जीवन भी इसी प्रकार का है यह संसार भी इसी तरह का है हमारे ऋषियों ने इसी की परिकल्पनाओं में अनेक अनुसंधान किये
समाज को जीने योग्य व्यवस्थाएं दी गईं
वर्ण आश्रम व्यवस्था अन्यत्र नहीं है
हम लोग समस्याओं के समाधान खोजते हैं और जब समाधान नहीं मिलता तो कहते हैं परमात्मा की ही ये लीला है
इतिहास में वीरगाथा काल में जब हम विजयी हुए तो साहित्यकारों ने उत्साहपूर्वक गान किया और जब विजय नहीं मिल रही थी तो परमात्मा की भक्ति और चिन्तन में चले गये यह भक्तिकाल था
विकारों और विचारों का अद्भुत संगम है
सारी दुनिया हमें महत्त्व दे रही है हमें भी अपने को महत्त्व देना है
हम पुरुष हैं पुरुषार्थ करने के लिये उठने की आवश्यकता है
रामचरित मानस का उच्च स्वर में पाठ करें किसी व्यक्ति को गुरु किसी को समाज किसी को देश साक्षात् श्रद्धा का स्वरूप दिखते हैं
आत्मस्थ होने की चेष्टा करने पर सब कुछ निर्वाह कर सकते हैं परिस्थितियों को देखकर अपने को ठीक करें और तब हम अपनों को भी ठीक कर सकते हैं
अपने इतिहास और परम्परा से हम बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं
आत्मानुभूति प्रसरित भी करें
आप लोगों से निवेदन है कि आचार्य जी से समस्यात्मक प्रश्न अवश्य करें
इसके अतिरिक्त किस प्रसंग में षष्ठ कक्षा का नाम आया जानने के लिये सुनें