पंकिल सर में खिला खिला सा नीरज हूं
प्रस्तुत है विद्या -पुरण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 13 सितम्बर 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
सार -संक्षेप 2/46
यदि हमारे मन में आ रहे भाव अभिव्यक्ति पा जाते हैं तो हमें तो अच्छा लगता है दूसरे भावुक व्यक्ति को भी अच्छा लगता है
हम सचेत रहें यही आचार्य जी द्वारा सन् 2014 में रचित निम्नांकित पंक्तियां कह रही हैं
पौरुष को तकदीर बदलनी आती है
कौशल को हरदम तदबीर सुहाती है
उत्साहों को सभी मंजिलें छोटी हैं
असंतोष को भली बात भी खोटी है
संशय से विश्वास हमेशा जीता है
भ्रम के अंधकार में दीपक गीता है
मन की कमजोरी जीवन में घातक है
विश्वासी से दगा घोरतम पातक है
सत्य विश्व की सबसे बड़ी साधना है
सुख में यश मुट्ठी में रेत बांधना है
समझ बूझकर भी दुर्गुण का त्याग नहीं
आस्तीन के भीतर बैठा नाग कहीं
उप्देशों से जीवन नहीं संवरता है
पाता वही यहां पर जो कुछ करता है
जीवन कर्म कुशलता की परिभाषा है
कर्म यहां की सबसे मुखरित भाषा है
कर्म प्रमाद निराशा की परछाई है
पतन मार्ग की सबसे गहरी खाई है
कर्म करें विश्वास करें अपनेपन पर
मन में न उल्लास रहेगा जीवन भर
ऊहापोह की स्थिति से बचना चाहिये इसी ऊहापोह के कारण हमारा बहुत नुकसान हुआ अध्यात्म में स्वार्थ का प्रवेश घातक रहा
आत्मकल्याण और समाजकल्याण कर्म से होता है इसे बताने के लिये बहुत से महापुरुष समय समय पर अवतरित हुए
आजकल पितृपक्ष चल रहा है
तर्पण भावनाओं का अर्पण है
यह ऐसा समय है जिसमें हम अपने को एक सीमा में बांधते हैं
हम अपने पूर्वजों का ध्यान करते हैं उनके सत्कर्मों का ध्यान करते हैं पिंडदान करते हैं
कुल मिलाकर मूल भाव यह है कि हम अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा निवेदित करें
आचार्य जी ने तर्पण की आसान विधि बताई
आचार्य जी ने एक और कविता सुनाई
मैं संस्कृति के सामगान का चारण हूं.......
हमारा पुरुषत्व जाग्रत रहेगा तो समस्याओं का निराकरण भी हो जायेगा
हमारे इसी पुरुषत्व को जाग्रत करने के लिये आचार्य जी प्रतिदिन अपना बहुमूल्य समय निकालकर हमें इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से प्रेरित कर रहे हैं
अब हमारा कर्तव्य है कि हम इनका लाभ उठायें फिर हम व्यवस्थित जीवन जी पायेंगे समस्याएं सुलझा लेंगे उत्साह द्विगुणित शतगुणित हो जायेगा