प्रस्तुत है दित्यारि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 14 सितम्बर 2022
का सदाचार संप्रेषण
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https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
सार -संक्षेप 2/47
(दित्य अर्थात् राक्षस
दित्यारि राक्षसों के शत्रु)
हम लोगों के सामने कुछ ऐसी घटनाएं घटित हो जाती हैं जिनका कोई पूर्व निर्धारण नहीं होता है
जिस तरह परिवेश में सहज प्रकृति घूमती रहती है उसी तरह मनुष्यों में भी सूक्ष्म रूप में सहज प्रकृति प्रवृत्ति घूमती रहती है
आज जलवर्षा हो रही है पितृ पक्ष में इसे शुभ माना गया है लेकिन जिसका घर कमजोर झोपड़ी के रूप में है और पानी अन्दर गिर रहा है तो वह शुभ अशुभ भूल जायेगा और वो व्यक्ति यही चाहेगा कि पानी न बरसे
संसार की अनुकूलन प्रतिकूलन की विधियों के साथ संसारी भाव में रहने वाले मनुष्यों के सुख दुःख संयुत रहते हैं
आचार्य जी ने दर्शन के सिद्धान्त यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे को समझाया जैसा हमारे भीतर हो रहा है वही ब्रह्माण्ड में दिखाई दे रहा है
आचार्य जी ने कल रात्रि 10:45 का एक प्रसंग बताया जब किसी ने आचार्य जी को फोन कर दिया जिसके कारण आचार्य जी को असुविधा हुई क्योंकि आचार्य जी दस बजे तक सो जाते हैं
अपने शरीर और मन के अनुकूल हो तो अच्छा और प्रतिकूल हो तो बुरा लगता है
यही संसार का वास्तविक स्वभाव है
आत्मबोध अर्थात् अपनी आत्मा तक पहुंचना और तत्त्वबोध संसारी बोध है जिनका शंकराचार्य आदि ने बहुत विस्तार से वर्णन किया है
आत्मबोध तत्त्वबोध के साथ जब सामंजस्य स्थापित करता है तो संसार में एक व्यवस्थित व्यवस्था रहती है और ऐसा हमारे देश की संस्कृति ने विकसित किया है
शिवगीता जिसमें शिव जी राघव जी संवाद है में शिव ही ब्रह्म है जब कि श्रीमद्भगवद्गीता में कृष्ण ही सब कुछ हैं
किसी में कोई विवाद नहीं जब कि अन्य देशों में ऐसा नहीं है
वो संसार में ही दर्शन की खोज करते हैं
हमारा देश ऐसा है जहां संघर्ष और सहयोग दोनों साथ साथ चलते हैं
आत्मस्थ होने पर आचार्य जी बहुत अच्छी कविताएं लिख देते हैं ऐसी ही एक कविता है
भावना हूं सृजन का विश्वास हूं
मत समझना यह कि केवल श्वास हूं....
यह अपने दर्द मैं दुलरा रहा हूं में प्रकाशित है
इसी में एक और कविता है
बोलो स्वदेश के स्वाभिमान
जागो स्वदेश के स्वाभिमान....
जब हमारा यह भावमय संसार आन्दोलित होता है और सृजन में अपना लिखा हम पढ़ते हैं तो आत्मानन्द बार बार प्रेरित प्रभावित और प्रबोधित करता रहता है
इसीलिये आचार्य जी लेखन योग पर जोर देते हैं शैली कोई भी हो इन्हें सुरक्षित भी रखें
अपने विचारों को स्वयं चिन्तन में लाइये तो हमारा अध्यात्म जाग्रत होगा और बहिर्मुख होकर देश संगठन आदि देखें समय का सदुपयोग करें
आने वाले वार्षिकोत्सव को एक दूसरे से परामर्श लेकर सफल बनाएं
राष्ट्रोन्मुखी होवें जिससे राष्ट्र समुन्नत होगा और विश्व का कल्याण होगा