16.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 16 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अध्यात्म -धुनिनाथ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 16 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/49


धुनिनाथः /धुनीनाथः = समुद्र



सिद्धान्त कहता है कि मनुष्य का जीवन अतीत की समीक्षा वर्तमान की योजकता और भविष्य पर विश्वास के त्रिडण्ड पर स्थापित और संतुलित रहता है


अतीत में जाते हुए आचार्य जी ने विद्यालय में होने वाली सदाचार वेला कुछ विद्यालयों के अनुसार शून्य वेला की चर्चा की


वही सातत्य अतीत का समीक्षित स्वरूप आज भी वायवीय माध्यम से चल रहा है आज भी सदाचार वेलाओं में सदाचारी भाव से सदाचारमय विचारों का संप्रेषण होता है


आचार्य जी यह अनुभव करते हैं कि हनुमान जी की कृपाछाया उनके ऊपर है  और हम लोगों से अव्याहत (अर्थात् जो झूठा बनावटी न हो )लगाव है इसलिये उनकी अभिव्यक्ति में विशिष्टता रहती है


जल में कुम्भ कुम्भ  में जल है बाहर भीतर पानी ।

फूटा कुम्भ जल जलहि समाना यह तथ कह्यौ गयानी ॥

का उदाहरण देते हुए आचार्य जी कहते हैं



आत्मा परमात्मा में और परमात्मा आत्मा में विराजमान है l अंतत: परमात्मा की ही सत्ता है 


यह भारतीय दर्शन बहुत गहराई से अपने को आवेष्टित करता हुआ चलता है इस दर्शन को हमारे सामने व्यावहारिक भाषा में इन संप्रेषणों में प्रस्तुत किया जाता है

ज्ञान और विज्ञान में अन्तर है विज्ञान जो सांसारिक दृष्टि व्यावहारिक दृष्टि से दिखाई दे और ज्ञान मूल तत्त्व है


विद्यालय में पढ़ते समय हम लोगों को आचार्यगण ज्ञान विज्ञान के साथ संस्कार देते थे क्योंकि विद्यालय उस महापुरुष पं दीनदयाल उपाध्याय की स्मृति में बना था जिसके अन्दर ज्ञान विज्ञान भारत का चिन्तन भारत ही समस्त विश्व के लिये कल्याणकारी है ऐसा विचार कूट कूट कर भरा था


राजनीति में उनका प्रवेश दुष्टों को नहीं भाया  और उनका शरीर नष्ट कर दिया


उनकी स्मृति में विद्यालय बना


भारत के संकल्प भारत के भविष्य विद्यार्थियों में सदाचार वेलाओं के माध्यम से शक्ति ऊर्जा उत्साह बुद्धि विवेक चैतन्य सद्विचार आदि भरने का काम अबाधित चलता रहा


और उन्हें इसके साथ लौकिक विद्या अर्थात् अविद्या भी उत्कृष्ट कोटि की प्रदान की गई 


आज भी आचार्य जी चाहते हैं कि हम मानस पुत्र उनके विचारों और विश्वासों का प्रसार करें


और हमारा भी कर्तव्य है


हमारे जीवन में तपस्विता होनी चाहिये हम पशु नहीं हैं

आचार्य जी शौर्यप्रमण्डित अध्यात्म पर जोर देते ही हैं

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया दिनेश भदौरिया का नाम क्यों लिया यशस्वी होने और चर्चित होने में क्या अन्तर है आदि जानने के लिये सुनें