18.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 18 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अध्यात्म -सत्त्र आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/51


सत्त्रम् =घर


परमात्मा की कृपा से हम लोगों को यह सुखद संयोग मिला है कि सदाचार संप्रेषण रूपी प्रचण्ड साधना लगातार चल रही है


हम लोगों में सदाचार वेलाओं के माध्यम से शक्ति ऊर्जा उत्साह बुद्धि विवेक चैतन्य सद्विचार आदि भरने का काम अबाधित चल रहा है और इसी कारण हम लोग  इनकी प्रतीक्षा करते हैं और इनसे उत्साहित आनन्दित होते हैं और यही कारण है कि हम लोगों का इनमें मन लगता है


हम यह भी अनुभव करें कि ईश्वर ने हमें कर्म का मङ्गल वरदान दिया है


यह साधना खंडित न हो इसलिये साधना से हमें प्राप्त परिष्करणों पर न आनंदित हों न भ्रमित हों

भैया शौर्यजीत ने बताया कि आचार्य जी द्वारा लिखे दोहों की पुस्तक तैयार हो गई है


आचार्य जी को एक डायरी मिली जिसमें सन् 2017 में भैया गोपाल जी के आग्रह पर आचार्य जी ने अपने लिखे  लगभग 850 दोहों में 159 दोहे और जोड़ दिये थे ताकि वो लगभग एक हजार हो जायें

इसी डायरी में एक मुक्तक है



तुम्हारा प्यार गंगाजल

 सजल श्रद्धा हिमालय सी

अडिग विश्वास की भाषा

 मुझे लगती शिवालय सी

अभी तक थे कहां पर तुम

नहीं मैं जान पाया सच

नहीं इस देश की सरिता

 बनी होती महालय सी



धर्म के तत्त्व को समझते हुए हम लोग पूर्ण विश्वास करते हैं कि यह धरती परम पवित्र शौर्य शक्ति संपन्न है और यहां से एक बार फिर दुष्टों का सफाया होगा



अब हम लोग मानस में प्रवेश करें

कर्ममय जीवन का प्रारम्भ अरण्य कांड में है


पुर नर भरत प्रीति मैं गाई। मति अनुरूप अनूप सुहाई॥

अब प्रभु चरित सुनहु अति पावन। करत जे बन सुर नर मुनि भावन॥1॥


एक बार चुनि कुसुम सुहाए। निज कर भूषन राम बनाए॥

सीतहि पहिराए प्रभु सादर। बैठे फटिक सिला पर सुंदर॥2॥


सुरपति सुत धरि बायस बेषा। सठ चाहत रघुपति बल देखा॥

जिमि पिपीलिका सागर थाहा। महा मंदमति पावन चाहा॥3॥


भगवान् राम आगे बढ़ जाते हैं  क्योंकि उन्हें तो जनमानस को शिक्षा देनी है कि मनुष्य  पुरुषार्थ करने वाला एक यात्री है मनुष्य संकटों का समाधान देखता है


विश्वास प्रेम भक्ति शक्ति संयम विवेक उत्साह साधना अनुरक्ति विरक्ति की यात्रा करने वाले राम भगवान् इसीलिये हमारे आदर्श हैं और इसीलिये मानस से हमें लाभ प्राप्त करना चाहिये


पुलकित गात अत्रि उठि धाए। देखि रामु आतुर चलि आए॥

करत दंडवत मुनि उर लाए। प्रेम बारि द्वौ जन अन्हवाए॥3॥


अत्रि मुनि समझ गये कि भगवान् राम वन में चौदह वर्ष काटने नहीं आये हैं वे जीवन की समस्याओं को छांटने आये हैं


निकाम श्याम सुंदरं। भवांबुनाथ मंदरं॥

प्रफुल्ल कंज लोचनं। मदादि दोष मोचनं॥2॥


दिनेश वंश मंडनं। महेश चाप खंडनं॥

मुनींद्र संत रंजनं। सुरारि वृंद भंजनं॥4॥


ये स्तुतियां अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं



धर्म मार्ग से हम लोगों को कर्म मार्ग की ओर चलना चाहिये