23.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 23 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु।

तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥ 31॥




प्रस्तुत है ज्ञान -क्षौणिप्राचीर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 23 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/56


क्षौणिप्राचीरः =समुद्र


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥



वन -पथ पर गमन करते हुए भगवान् श्री राम  ने भुजा उठाकर प्रण किया कि मैं मही (पृथ्वी) को राक्षसों से रहित कर दूँगा....


इस संसार में वन, धन, जन के साथ मन भी है और सब के साथ संतुलन करता हुआ संघर्ष करता हुआ मनुष्य अपनी यात्रा करता है


अरण्य कांड में कथाओं में वैविध्य है ऐसे ऋषियों, जिनके श्राप से रावण भी भयभीत है, के संपर्क, प्रेम, आत्मीयता, तपस्या का समावेश है


कबन्ध के कारण शरभंग के आश्रम बहुत लोग जाते नहीं हैं फिर कबन्ध नष्ट होता है



जानतहूँ पूछिअ कस स्वामी। सबदरसी तुम्ह अंतरजामी॥

निसिचर निकर सकल मुनि खाए। सुनि रघुबीर नयन जल छाए॥4॥


रामकथा के माध्यम से तुलसी ने सामाजिक जागरण का भी संकेत किया

ऋषि मुनि तपस्या में लगे हैं संगठन में नहीं लगे हैं जब कि संगठन की आवश्यकता है 


मुनि अगस्ति कर सिष्य सुजाना। नाम सुतीछन रति भगवाना॥

मन क्रम बचन राम पद सेवक। सपनेहुँ आन भरोस न देवक॥1॥


प्रभु आगवनु श्रवन सुनि पावा। करत मनोरथ आतुर धावा॥

हे बिधि दीनबंधु रघुराया। मो से सठ पर करिहहिं दाया॥2॥

सुतीक्ष्ण जिज्ञासा व्यक्त कर रहे हैं कि क्या दीनबंधु राम मुझ शठ पर भी दया करेंगे


नहिं सतसंग जोग जप जागा। नहिं दृढ़ चरन कमल अनुरागा॥

एक बानि करुनानिधान की। सो प्रिय जाकें गति न आन की॥4॥


होइहैं सुफल आजु मम लोचन। देखि बदन पंकज भव मोचन॥

*निर्भर प्रेम* मगन मुनि ग्यानी। कहि न जाइ सो दसा भवानी॥5॥


मुनिहि राम बहु भाँति जगावा। जाग न ध्यान जनित सुख पावा॥

भूप रूप तब राम दुरावा। हृदयँ चतुर्भुज रूप देखावा॥9॥


आचार्य जी ने ध्यान जनित सुख के लिये स्वामी विवेकानन्द का उदाहरण दिया कि ध्यानमग्न होने पर उनके ऊपर सांप चढ़ गया और उन्हें पता नहीं चला


परेउ लकुट इव चरनन्हि लागी। प्रेम मगन मुनिबर बड़भागी॥

भुज बिसाल गहि लिए उठाई। परम प्रीति राखे उर लाई॥11॥


तब मुनि हृदयँ धीर धरि गहि पद बारहिं बार।

निज आश्रम प्रभु आनि करि पूजा बिबिध प्रकार॥10॥


एवमस्तु करि रमानिवासा। हरषि चले कुंभज रिषि पासा॥

बहुत दिवस गुर दरसनु पाएँ। भए मोहि एहिं आश्रम आएँ॥1॥



शक्ति के पुञ्ज कुंभज (कुम्भ से जन्म लेने के कारण )ऋषि अर्थात् अगस्त्य मुनि का तथ्यपूर्ण मिलन है l

ऐसे विलक्षण शक्ति के पुञ्ज ऋषियों के होते हुए रावण क्यों विकसित हो रहा था इस  रहस्य का उद्घाटन आचार्य जी आगे करेंगे