24.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 24 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है नक्तारि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 24 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/57


नक्तम् = रात /अंधकार



भारतीय संस्कृति गुरु शिष्य परम्परा की संस्कृति है

हम लोग कहते हैं


ॐ सह नाववतु ।

सह नौ भुनक्तु ।

सह वीर्यं करवावहै ।

तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥


दैहिक दैविक भौतिक समस्याओं के शमन की कामना करते हैं


बालक जन्म लेता है तो मां उसकी प्रथम गुरु होती है उसका प्रथम कर्तव्य है उसकी रक्षा करना


मां के माध्यम से वह फिर संसार पहचानता है


ईश्वर की प्रेरणा से प्राप्त इन संप्रेषणों का उद्देश्य होता है कि हम लोग प्रेमाधारित संगठन युगभारती के माध्यम से समाजोन्मुखी जीवन जीने का संकल्प लें उसे कायम रखें


वेद ब्राह्मण ग्रंथ के बाद आरण्यक हैं जो दार्शनिक स्तर पर लिखे गये हैं यज्ञ दान तप का जीवन हमारे यहां बहुत महत्त्व का है यज्ञ का अर्थ है राष्ट्र समाज सृष्टि परमात्मा के लिये देना


रावण

उत्तम कुल पुलस्ति कर नाती। सिव बिंरचि पूजेहु बहु भाँती॥

बर पायहु कीन्हेहु सब काजा। जीतेहु लोकपाल सब राजा॥

  ऋषियों का पुत्र होने के बाद भी साधुत्व को नष्ट करने में लगा हुआ था


इन जैसों के विनाश के लिये ही परमात्मा किसी न किसी रूप में आता है


यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।


अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।4.7।।


हम सबमें परमात्मा का स्वरूप विद्यमान है केवल उसके जाग्रत होने की आवश्यकता है




सान्द्रानन्दपयोदसौभगतनुं पीताम्बरं सुंदरं

*पाणौ बाणशरासनं कटिलसत्तूणीरभारं वरम्‌*।

राजीवायतलोचनं धृतजटाजूटेन संशोभितं

सीतालक्ष्मणसंयुतं *पथिगतं* रामाभिरामं भजे ॥2॥


*निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह*।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥


हमें अपने अन्दर राम के रामत्व को प्रवेश कराने की आवश्यकता है भगवान् राम राजा के घर उत्पन्न हुए लेकिन उनके अन्दर एक चिन्तना व्याप्त है


रावण को समाप्त करना है लेकिन उसके पहले रावण रूपी स्थाणु की शाखाएं काटने में लगे हुए हैं


नाथ कोसलाधीस कुमारा। आए मिलन जगत् आधारा॥

राम अनुज समेत बैदेही। निसि दिनु देव जपत हहु जेही॥4॥


ऋषि अगस्त्य तपोनिष्ठ यशस्वी सिद्ध हैं दक्षिण में इनका बहुत सम्मान है

अगस्त्य ऋषि की शिक्षा के आधार पर ही प्रभु राम ने रावण का वध किया है



सुनत अगस्ति तुरत उठि धाए। हरि बिलोकि लोचन जल छाए॥

मुनि पद कमल परे द्वौ भाई। रिषि अति प्रीति लिए उर लाई॥5॥


तब रघुबीर कहा मुनि पाहीं। तुम्ह सन प्रभु दुराव कछु नाहीं॥

तुम्ह जानहु जेहि कारन आयउँ। ताते तात न कहि समुझायउँ॥1॥


अब सो मंत्र देहु प्रभु मोही। जेहि प्रकार मारौं मुनिद्रोही॥

मुनि मुसुकाने सुनि प्रभु बानी। पूछेहु नाथ मोहि का जानी॥2॥


है प्रभु परम मनोहर ठाऊँ। पावन पंचबटी तेहि नाऊँ॥

दंडक बन पुनीत प्रभु करहू। उग्र साप मुनिबर कर हरहू॥8॥


गीधराज सै भेंट भइ बहु बिधि प्रीति बढ़ाइ।

गोदावरी निकट प्रभु रहे परन गृह छाइ॥13॥


वहाँ जटायु से भेंट हुई। उसके साथ  प्रेम बढ़ाकर प्रभु  राम गोदावरी के पास पर्णकुटी में रहने लगे