25.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 25 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 इक्ष्वाकु वंश प्रभवो रामो नाम जनैः श्रुत:......


दंडक बन प्रभु कीन्ह सुहावन। जन मन अमित नाम किए पावन॥

निसिचर निकर दले रघुनंदन। नामु सकल कलि कलुष निकंदन॥



प्रस्तुत है ज्ञान -महिर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 25 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/58


महिरः =सूर्य


आचार्य जी सदैव कामना करते हैं कि हमारे पास धन से भरा भण्डार हो लेकिन मां सरस्वती की कृपा भी बनी रहे इसके लिये हमें अध्ययन और स्वाध्याय की ओर उन्मुख होना चाहिये  वैचारिक राक्षसों के चंगुल में हम इतना फंसे हुए हैं कि हमें  अपने धर्म अपनी संस्कृति पर ही अविश्वास रहता है इसी अविश्वास को दूर करने के लिये आचार्य जी का नित्य यह उद्बोधन अद्वितीय प्रयास है


नई पीढ़ी को   बिना  पराजय वाले संकट में डाले शक्ति विश्वास से उत्साहित और परिपुष्ट करने की आवश्यकता है

उसमें मनुष्यत्व का लोप न हो इसका भी हमें ध्यान देना होगा


शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन सुरक्षा संगठन राष्ट्र समाज परिवार के सम्बन्ध में जो भी सात्विक विचार हमारे अन्दर आयें उनका हम लोग प्रसार करें ताकि अन्य लोगों को उनका लाभ मिले



विचारों का प्रसार समाज सेवा का एक आधारभूत तत्त्व है हमें अपने सात्विक विचार किसी भी माध्यम से प्रकट अवश्य करने चाहिये उन्हें अपने अन्दर रखने से कोई लाभ नहीं


इस लेखन के वरदान का दुरुपयोग नहीं करना चाहिये


भक्ति को पंगु नहीं होना चाहिये भक्ति में शक्ति शौर्य पराक्रम संयम स्वाध्याय समाजोन्मुखी साधना का समावेश होना चाहिये


आचार्य जी विद्यालय में भी रामकथा सुनाते थे और उन्होंने  श्री हरिशंकर शर्मा का उल्लेख करते हुए वह प्रसंग भी बताया कि रामकथा का वहां उन्होंने प्रारम्भ किस कारण किया




आइये अरण्य कांड में प्रवेश करते हैं

अगस्त्य मुनि,जिनसे दैत्य वर्ग बहुत आतंकित रहता है इसी कारण अधिकतर उपद्रव हमें उत्तर भारत में मिलते हैं , के आश्रम में 


( सगर की इक्कीसवीं पीढ़ी के भगवान् राम भरद्वाज से मार्ग पूछते हैं बाल्मीकि से अस्थायी निवास पूछते हैं और यहां अगस्त्य मुनि से पूछ रहे हैं ) 


अब सो मंत्र देहु प्रभु मोही। जेहि प्रकार मारौं मुनिद्रोही॥

मुनि मुसुकाने सुनि प्रभु बानी। पूछेहु नाथ मोहि का जानी॥2॥

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राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम् ।

येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥

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यह आदित्य हृदय मन्त्र अत्यन्त अद्भुत परम पवित्र और संपूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला  है । इसके जप से सदा विजय की प्राप्ति होती है ।  इससे समस्त पापों का नाश हो जाता है । यह चिंता, शोक, नकारात्मक सोच को मिटाने और आयु बढ़ाने वाला उत्तम मन्त्र है


बताते चलें 

हनुमन्नाटक संवत् १६२३ में संस्कृत में  कवि हृदयराम द्वारा रचित प्रभु राम के जीवन पर आधारित धार्मिक ग्रन्थ है। इसे गुरु गोविन्द सिंह हमेशा अपने पास रखते थे।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज श्रीवास्तव, श्री भानु प्रताप का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें