26.9.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 26 सितम्बर 2022(नवरात्र प्रारम्भ ) का सदाचार संप्रेषण

 सो मायाबस भयउ गोसाईं। बँध्यो कीर मरकट की नाईं॥

जड़ चेतनहि ग्रंथि परि गई। जदपि मृषा छूटत कठिनई॥2॥


प्रस्तुत है प्रत्ययकारक आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 26 सितम्बर 2022(नवरात्र प्रारम्भ )

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/59


प्रत्ययकारकः =विश्वास पैदा करने वाला



आत्म का विस्तार जब व्यवहार में प्रकट होता है तब समाज की व्यवस्थाएं हमारे मनोनुकूल बनती हैं इसी मनोनुकूल वातावरण से हम उत्साहित होते हैं ऐसा वातावरण न हो तो हम कुंठित होते हैं 




सांकेतिक व्यवहार /कार्य भी अत्यन्त उपयोगी होते हैं इनसे सिलसिला संयुत रहता है जैसे

कल संपन्न हुआ वार्षिक अधिवेशन जिसे वार्षिक सम्मेलन कहा जाये तो ज्यादा उचित होगा क्योंकि यह अल्पकाल का था चिन्तन अभिव्यक्ति उत्साह का मिलाजुला स्वरूप अधिवेशन है इस सम्मेलन की समीक्षा बैठक अवश्य करें जो सदस्य नहीं आ पाये उनका कुशल क्षेम पूछें


हमारे यहां शिक्षार्थियों को कभी समाज  संपोषित किया करता था ज्ञान और व्यवहार का सामञ्जस्य हमारे देश की शिक्षा की थाती है



आइये अरण्य कांड में प्रवेश करते हैं


चले राम मुनि आयुस पाई, तुरतहि पंचवटी नियराई।



पंचवटी गोदावरी के उद्गम स्थान त्र्यंम्बकेश्वर से लगभग  32 कि.मी.दूर है 


पंचानां वटानां समाहार इति पंचवटी'। ये पांच वट हैं अशोक अश्वत्थ आमलक वट और विल्ब


गङ्गे ! च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति! नर्मदे! सिंधु! कावेरि! जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।।

स्नान करते समय यह मन्त्र हम लोग बोलते हैं सन्ध्योपासन में संपूर्ण आर्यावर्त का चिन्तन करते हैं

ऐसी विलक्षण संस्कृति है हमारी , हम लोग अपने को पहचानने की कोशिश करें


गीधराज सै भेंट भइ बहु बिधि प्रीति बढ़ाइ।

गोदावरी निकट प्रभु रहे परन गृह छाइ॥13॥


जटायुं जी भगवान् राम को आश्वस्त करते हैं कि आप लोग मेरी छत्रछाया में सुरक्षित हैं अपने लोगों की छाया में परिवार भी सुरक्षित रहते हैं


जब ते राम कीन्ह तहँ बासा। सुखी भए मुनि बीती त्रासा॥

गिरि बन नदीं ताल छबि छाए। दिन दिन प्रति अति होहिं सुहाए॥1॥


खग मृग बृंद अनंदित रहहीं। मधुप मधुर गुंजत छबि लहहीं॥

सो बन बरनि न सक अहिराजा। जहाँ प्रगट रघुबीर बिराजा॥2॥


एक बार प्रभु सुख आसीना। लछिमन बचन कहे छलहीना॥

सुर नर मुनि सचराचर साईं। मैं पूछउँ निज प्रभु की नाईं॥3॥



मोहि समुझाइ कहहु सोइ देवा। सब तजि करौं चरन रज सेवा॥

कहहु ग्यान बिराग अरु माया। कहहु सो भगति करहु जेहिं दाया॥4॥



ईस्वर जीव भेद प्रभु सकल कहौ समुझाइ।

जातें होइ चरन रति सोक मोह भ्रम जाइ॥14॥



थोरेहि महँ सब कहउँ बुझाई। सुनहु तात मति मन चित लाई॥

मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया॥1॥


इसके बाद राम गीता प्रारम्भ होगी


भैया दृश्यमुनि, श्री योगेन्द्र भार्गव, भैया डा अमित गुप्त

भैया डा पङ्कज

 भैया मनीष कृष्णा, भैया विधुकांत का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया आदि भी जानने के लिये सुनें