प्रस्तुत है कृतोत्साह आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 3 सितम्बर 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
सार -संक्षेप 2/36
विचारों के महायज्ञ में यह संप्रेषण रूपी नित्य की आहुति वर्णनातीत है हम लोगों को इसका लाभ मिलता है इसमें दो राय नहीं
परिस्थितियों की अनुभूति करने और उनका समाधान खोजने पौरुष और पराक्रम को प्रयोग में लाने सद्विचारों को ग्रहण करने विकारों को दूर करने हेतु प्रयास करने समाजोन्मुखी जीवन जीने राष्ट्रार्पित जीवन जीने ध्यान धारणा चिन्तन मनन निदिध्यासन अध्ययन स्वाध्याय आदि करने के लिये
नित्य आचार्य जी हमें प्रेरित करते हैं
प्रपंचों से भरे इस संसार में संबन्धों के कारण भी आनन्द की अनुभूति होती है संबन्धों की व्याख्या नहीं की जा सकती कभी ये बनते हैं कभी बिगड़ते हैं अचानक बन जाते हैं
परस्पर संबन्धों के आनन्द का कुछ न कुछ माध्यम होता है
माता पिता भाई बहन चाचा मामा मौसी बुआ आदि से आत्मीयता प्रेम उत्साह संयम का संदेश आदि मिलता है लेन देन का यह संसार आनन्दमय होकर चलता रहता है हम लोगों की यह आनन्दमय अवस्था सतत बनी रहे व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के लिये इसका प्रयास करता रहता है
जब हम विचार करते हैं कि भारत कभी विश्वगुरु रहा था आज इसकी क्या दशा हो गई है तो दुःख होता है इतना चिन्तन -प्रवण विचार -प्रवण यज्ञमय भावमय देश की अब यह दशा है हम लोग तनावमय जीवन जीने लगे अपनी ही भाषा की उपेक्षा करने लगे धर्म अर्थ के हवाले करने लगे
इसी पर आचार्य जी ने एक बहुत अच्छी कविता लिखी थी
कविता पूरा देश मसान हो गया
धन साधन सुविधा के वन में हर घर का इन्सान खो गया
ऐसा जादू किया किसी ने पूरा देश मसान हो गया ।।
सम्बन्धों की रस्म अदाई
हूल रही भीतर तनहाई
धर्म अर्थ के हुआ हवाले
सच पर जड़े हुए हैं ताले
सुख के लिए स्वत्व का तर्पण,
दैनिक कर्म विधान हो गया | |1| |
ऐसा जादू.....
भाषा, भूषा वेश पराया
प्रेम और आवेश पराया
घर के चूल्हे हुए विरागी
माँ का दूध हो गया दागी
त्याग” कोष का शब्द,
देश का चिन्तन अर्थ प्रधान हो गया | |2।।
ऐसा जादू......
ध्यान योग आयात हो रहा
स्वत्व लुप्त चैतन्य सो रहा
स्वारथ पगी प्रवचनी भाषा
बदल गयी तप की परिभाषा
सत्य सनातन सदाचरण का,
आज नया अभिधान हो गया | |3। |
ऐसा जादू.....
प्रेम वासना का प्रहरी है
मानवता अंधी-बहरी है
बचा नहीं कुछ अपना जैसा
काबिज हुआ सभी पर पैसा
आकर घिरी अमावस,
लेकिन कहते लोग विहान हो गया | ।4 | |
ऐसा जादू....
बेवश लोक, तन्त्र है हावी
भय से काँप रही है भावी
पेट हो गया पूरा जीवन
दूषित हुआ प्रगति का चिन्तन
कैसे कहूँ देश का अपना,
अलग स्वतंत्र विधान हो गया ll 5ll
ऐसा जादू.....
मसान की ओर जाते इस देश को हम लोगों को यज्ञशाला की ओर उन्मुख करना है विध्वंस से लौटकर हमें सृजन करना है इसके लिये ही आचार्य जी हमें प्रेरित करते हैं हम इस बात को समझें