बनो संसृति के मूल रहस्य, तुम्हीं से फैलेगी वह बेल,
विश्व-भर सौरभ से भर जाय सुमन के खेलो सुंदर खेल।"
प्रस्तुत है कृतोद्वाह आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 5 सितम्बर 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
सार -संक्षेप 2/38
संपूर्ण सृष्टि यज्ञमय है नित्य ही यज्ञ होता रहता है
जब हम यज्ञमय भाव से संसार में रहते हैं तब आनन्दित रहते हैं
ऐसा ही एक यज्ञ 'राजसूय यज्ञ 'मियांगंज उन्नाव में 10से 14 नवम्बर 2022 को होने जा रहा है इसकी सूचना भैया मुकेश जी ने दी
गीता मानस का आश्रय लेकर हम शक्ति बुद्धि विचार विवेक चैतन्य आदि सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं
संसारी कर्मों में हम अपना समय तो व्यतीत करते ही हैं लेकिन यदि कुछ समय हम इस सदाचार संप्रेषण रूपी नित्य यज्ञ के लिये निकाल लें तो यह हमें यशस्वी जयस्वी तेजस्वी आदि बहुत कुछ बना सकता है
हम इस शरीर को साधना में रत रखने के लिये उत्साहित हों
गीता में
यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः।
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्।।3.13।।
यज्ञ के बचे अन्न को खाने वाले श्रेष्ठ जन सब पापों से मुक्त हो जाते हैं और जो मात्र स्वयं के लिये ही पकाते हैं वे तो पापों को ही खाते हैं।
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः।।3.14।।
सभी प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं अन्न की उत्पत्ति वर्षा से। वर्षा की उत्पत्ति यज्ञ से और यज्ञ कर्मों से
कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्।
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्।।3.15।।
सर्वव्यापी ब्रह्म सदा ही यज्ञ में प्रतिष्ठित हैं
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।।4.24।।
महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः।।10.25।।
मैं महर्षियों में भृगु और वाणी में एकाक्षर ॐ हूँ। मैं यज्ञों में जपयज्ञ और अचलों में हिमालय हूँ।
समुद्र नित्य यज्ञ कर रहा है संपूर्ण प्रकृति नित्य यज्ञ करती है आकाश धरती का सम्बन्ध है जो ये सब नहीं समझते वे जड़ हैं
प्रेत रूप में चलते फिरते पुतले हैं
उनका जीवन किसी तरह चल रहा है ऐसे लोगों का उपयोग दूसरे लोग (HANDLERS) करते हैं
ये मनुष्य नहीं हैं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें