7.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 7 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है कृतकृत्य आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 7 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/40


अद्वितीय व्यवस्थित व्यवस्था से चलता हुआ यह नित्य का संप्रेषण हम सबको सदाचरण के लिये प्रेरित करता है हमें समस्याओं से छुटकारा दिलाने का मार्ग दिखाता है राष्ट्र और समाज के प्रति  कर्तव्य की याद दिलाता है

उत्साहपूर्ण उल्लासपूर्ण आनन्दित जीवन जीने के मार्ग की ओर ले जाता है


भारतवर्ष की भावधारा में बहने वाले लोगों के लिये यह कोई आश्चर्य का विषय इसलिये नहीं है क्योंकि वे जानते हैं कि यह सब सर्वशक्तिमान परमात्मा ही कर रहा है


हम सभी को बाह्यदर्शन के साथ आत्मोत्थान के लिये आत्मदर्शन भी करना चाहिये

आत्मज्योति के दर्शन प्राप्त करने के बाद आनन्द का एकान्तिक अनुभव मिल सके

आचार्य जी इसी के लिये नित्य हमें जाग्रत करते हैं



समाने वृक्षे पुरुषो निमग्नोऽनिशया शोचति मुह्यमानः।

जुष्टं यदा पश्यत्यन्यमीशमस्य महिमानमिति वीतशोकः ॥



पुरुष  ही वह पंछी है जो समान वृक्ष पर बैठकर निमग्न है क्योंकि वह अनीश है वह मोह के वशीभूत होकर शोक करता है। किन्तु जब वह उस दूसरे को देखता है जो ईश है तब वह जान जाता है कि जो कुछ भी है, वह उसकी ही महिमा है और वह शोकमुक्त हो जाता है


भारतवर्ष जहां हम जन्मे हैं धर्मप्राण देश है अध्यात्म में रत होते हुए भी यह आध्यात्मिक प्रयोगशाला है


तरह तरह के प्रयोग होते रहे इसी कारण वेदों के बाद भी हमें आध्यात्मिक साहित्य की प्रचुर मात्रा मिली


असभ्य बाहरी राक्षसों ने बहुत से ग्रंथ नष्ट करे तो उनमें अधिकांश ग्रंथ आत्मस्थ कर लिये गये


ऐसी संघर्षरत मनुष्यों की शृंखला की हम एक कड़ी हैं


विरोधी विचारों का भी हमने स्वागत किया है

शास्त्रार्थ हुए लेकिन कटुता नहीं आई

 मण्डनमिश्र शंकराचार्य शास्त्रार्थ में मण्डनमिश्र की पत्नी न्यायपीठ पर बैठीं हैं और पति के विरोध में फैसला आता है


त्रयी साङ्ख्यं योगः पशुपतिमतं वैष्णवमिति

प्रभिन्ने प्रस्थाने परमिदमदः पथ्यमिति च।

रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिल नानापथजुषां

नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव॥ ७॥


शिवमहिम्नस्तोत्रम्‌ से लिये गये इस श्लोक की कुछ पंक्तियां स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो सम्मेलन में कहीं थीं


भारतवर्ष ने बिना व्याकुल हुए परमसत्य तक पहुंचने के इतने सारे मार्ग स्वीकारे


इतने समृद्ध देश के हम नागरिक अगर भ्रमित हों तो यह दुःख की बात है


सिख बौद्ध जैन आदि में बंट गये शिक्षा की दुर्दशा हो गई

गुरु अर्जुनदेव को शरणागत की रक्षा के कारण बलिदान होना पड़ा 

हिन्दू धर्म की रक्षा के लिये ही गुरुगोविन्द सिंह एक अद्वितीय उदाहरण हैं

भाव की पूजा करते करते हमने इतनी लम्बी यात्रा की है हमारी सबसे प्राचीन संस्कृति है

हमें जागने की जरूरत है अपने संगठन को मजबूत बनाएं हम किसी उद्देश्य को लेकर चल रहे हैं

बहुत से विकारों के बाद भी हमारी हिन्दू संस्कृति पूज्य उपास्य है स्वीकारने योग्य है हम देखें कि कितने लोगों को हम राष्ट्रोन्मुखी बना रहे हैं

हम योग के मार्ग पर चलने का प्रयास करें भोग तो बहुत कर लिया


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया नीरज जी का नाम क्यों लिया अक्षयवट की चर्चा क्यों की जानने के लिये सुनें