8.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 8 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है जाल्मारि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 8 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/41



समय का अनुशासन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है एक निश्चित समय पर किसी को कार्य करना अधिक महत्त्व का है

इस सदाचार संप्रेषण का भी निर्धारित समय है


प्रकृति से परमात्मा जीव से ब्रह्म सृष्टि से स्रष्टा तक जहां इस प्रकार के प्रतिबन्धन का परिपालन होता है वहां व्यवस्थित व्यवस्था चलती है और जहां इसमें अस्तव्यस्तता आती है वहां व्यवस्था अव्यवस्थित हो जाती है


यही अव्यवस्थित व्यवस्था ही अराजकता है जिससे समस्याएं पैदा होती हैं


किसी चिन्तक ने कहा था कि कलियुग में एक ही वर्ण वैश्य और एक ही आश्रम गृहस्थ है


लेकिन हम लोग  प्रयास करते हैं कि अन्य आश्रमों में भी झांक लें


यथा वायो समाश्रित्य वर्तन्ते सर्वजन्तवः । तथा गार्हस्थ्यमाश्रित्य वर्तन्ते सर्व आश्रमाः  l


जैसे वायु प्राणिमात्र के जीवन का आश्रय है  वैसे ही गार्हस्थ्य सभी आश्रमों का आश्रम है।


जिस समय हमारे यहां सात्विक तात्विक शक्तिसंपन्न और संपूर्ण विश्व को अपने में समाहित करने की शिक्षा थी उस समय राजा का पुत्र भी गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करने जाता था तो वह जीवन की शिक्षा  लेता था पांच घर जाकर उसे भिक्षाटन करना होता था

यदि कोई ब्रह्मचारी भिक्षाटन के लिये नहीं पहुंचता था तो उस घर की गृहिणी अपना दुर्भाग्य समझती थी

यह परस्पर का अनुकूलन इस राष्ट्र की संपदा है


और इस समय अविश्वास का बोलबाला है

स्वयं पर भी विश्वास नहीं यह प्रेत रूपी जीवन भारत का दुर्भाग्य है



ऐसे संकटों के बीच रहकर तुलसी ने उत्तरकांड में रामराज्य का अद्भुत वर्णन किया है.


अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा॥

नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना॥3॥


सब निर्दंभ धर्मरत पुनी। नर अरु नारि चतुर सब गुनी॥

सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतग्य नहिं कपट सयानी॥4॥


राम राज नभगेस सुनु सचराचर जग माहिं।

काल कर्म सुभाव गुन कृत दु:ख काहुहि नाहिं॥21॥


ऋषियों चिन्तकों विचारकों कवियों की वाणी परमात्मा की कृपा से उद्भूत होती है


उससे लगाव हो जाये उसका अभ्यास हो जाये उसके प्रति भक्ति जाग जाये तो आनन्द ही आनन्द है



10 से 14 नवम्बर को होने वाले राजसूय यज्ञ को भी हम अपना ही कार्यक्रम मानें और उसमें यथासंभव अपना सहयोग करें

हमें आत्मविस्तार करने की आवश्यकता है


सदाचार का यह एक बड़ा संदेश है कि हम परेशान न हों खीजें नहीं समय निकालें


समय का महत्त्व समझें



तुलसी के समय की तरह आज भी विषबेल फैल रही हैं  अमृत के अंकुरों की आज भी आवश्यकता है


अपने ज्ञान -चक्षु खोलकर अमृत और विष का अन्तर समझें



खानपान सही करें व्यवहार सही करें धर्म को बाहर व्यवहार में लायें शक्ति बुद्धि का अर्जन करें


राष्ट्र के प्रति अनुरक्ति रखें परमात्मा के प्रति भक्ति रखें और अपने कर्तव्यों के प्रति रति रखें