जे श्रद्धा संबल रहित नहिं संतन्ह कर साथ।
तिन्ह कहुँ मानस अगम अति जिन्हहि न प्रिय रघुनाथ॥ 38॥
संत हृदय नवनीत समाना। कहा कबिन्ह परि कहै न जाना॥
निज परिताप द्रवइ नवनीता। पर दुख द्रवहिं संत सुपुनीता॥4॥
संतन्ह के लच्छन रघुबीरा। कहहु नाथ भव भंजन भीरा॥
सुनु मुनि संतन्ह के गुन कहऊँ। जिन्ह ते मैं उन्ह कें बस रहऊँ॥3॥
प्रस्तुत है ज्ञान -समीच आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 13 अक्टूबर 2022
का सदाचार संप्रेषण
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सार -संक्षेप 2/76
समीचः =समुद्र
बालकांड और अरण्यकांड की उपर्युक्त पंक्तियों का बहुत विस्तार हो सकता है जैसा मानसपीयूष में कुछ विस्तार है
आचार्य जी गुरु के रूप में हमें सन्मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करते हैं
आचार्य जी को गुरुता इस कारण मिली है कि उनका अंधकार विदीर्ण हो गया है और उन्हें सुस्पष्ट दिखाई देता है और इसीलिये वे इन सदाचार वेलाओं में ऐसे विषय उठाते हैं जिनके माध्यम से हम इस संसार में रहते हुए संसार की समस्याओं को केवल नाटक के दृश्य समझें
हम अपनी इच्छानुसार आनन्द का क्षेत्र ढूंढे वह संगीत गायन वादन कीर्तन लेखन आदि कोई भी क्षेत्र हो सकता है
यह संसार अकेले चलने का पथ नहीं है हम समूह में चलते हैं तो ही आनन्द में रहते हैं अकेले यात्रा बोझ हो जाती है
संसार को समझना है तो इस स्वरूप का आनन्द हमें लेना ही होगा
संसार की समस्याओं से हम बच नहीं सकते और इनसे जूझने के लिये हमें आत्मशक्ति चाहिये
और आत्मशक्ति के लिये आवश्यक है कि शरीर के अन्दर अवस्थित आत्मा और परमात्मा का स्वरूप आनन्दित हो
मेरे अन्दर कितना शिवत्व है इसकी अनुभूति करें
अर्जुन के प्रश्न
प्रकृतिं पुरुषं चैव क्षेत्रं क्षेत्रज्ञमेव च।
एतद्वेदितुमिच्छामि ज्ञानं ज्ञेयं च केशव।।13.1।।
हे केशव ! मैं, प्रकृति, पुरुष, क्षेत्र, क्षेत्रज्ञ, ज्ञान और ज्ञेय को जानना चाहता हूँ।।
पर भगवान् कहते हैं
इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते।
एतद्यो वेत्ति तं प्राहुः क्षेत्रज्ञ इति तद्विदः।।13.2।।
हे कौन्तेय ! यह शरीर क्षेत्र है और इसको जो जानता है, उसे क्षेत्रज्ञ कहते हैं।।
स्वाध्याय भक्ति अध्ययन सद्संगति संयम नियम शौर्यप्रमंडित अध्यात्म आदि हमें जानना ही होगा
अरण्य कांड में
रावनारि जसु पावन गावहिं सुनहिं जे लोग।
राम भगति दृढ़ पावहिं बिनु बिराग जप जोग॥46 क॥
दीप सिखा सम जुबति तन मन जनि होसि पतंग।
भजहि राम तजि काम मद करहि सदा सतसंग॥46 ख॥
का उल्लेख करते हुए आज आचार्य जी ने अरण्यकांड का समापन किया
इसके अतिरिक्त आदरणीय बालेश्वर जी भैया पंकज जी का नाम क्यों लिया तवे पर कौन बैठ गया आदि जानने के लिये सुनें