15.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 15 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 एहि महँ रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुरान श्रुति सारा॥

मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥1॥



प्रस्तुत है ज्ञान-उदवसित आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 15 अक्टूबर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/78

उदवसितम् =घर



इस सदाचार वेला का श्रवण करते समय अपने मन को केन्द्रीभूत करके हम इसका लाभ लें हम अध्यात्मोन्मुख तो हैं लेकिन अध्यात्म में हमारा प्रवेश नहीं है

अध्यात्म में प्रवेश और फिर उसका आनन्द लेने की अवस्था, है तो दुर्लभ, लेकिन असंभव नहीं

आचार्य जी की कल्पनाएं हमारा यथार्थ बनें

हमारे सांसारिक प्रपंचों के बोझ को आचार्य जी उतारना चाहते हैं 

आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हम लोगों के अन्दर रामत्व का प्रवेश हो जिस प्रकार शिक्षक के रूप में विश्वामित्र और वशिष्ठ ने राम लक्ष्मण भरत जैसे शिक्षार्थी तैयार किये थे उसी प्रकार हम लोगों को राम लक्ष्मण भरत आदि का स्वरूप धारण करना होगा क्योंकि


..ऋषियों की अंतड़ियों से रावण लहू निचोड़ रहा है...

तो रामत्व धारण करना होगा 

निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥



और फिर हम अपने को विश्वामित्र आदि की तरह शिक्षक मानकर भावी पीढ़ी को राम आदि का स्वरूप धारण कराएं


यह सिलसिला भारतभूमि के भाव के विस्तार का एक विशालकाय उपक्रम है


आचार्य जी ने विनयपत्रिका की अत्यधिक रोचक विधि व्यवस्था बताई


राम चरित मानस तो अद्वितीय है



तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा।। 

भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई।।

जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें। तस कहिहउँ हियँ हरि के प्रेरें।। 

निज संदेह मोह भ्रम हरनी। करउँ कथा भव सरिता तरनी।।



अपना संदेह दूर करके हम दूसरे के संदेह दूर कर सकते हैं राम जी के प्रति विश्वामित्र के मन में संदेह नहीं था ना ही राम जी के मन में उनके प्रति संदेह था परिस्थितियां कितनी विषम थीं इसका अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रावण ऋषियों का रक्त -कोश बना रहा था

आज भी अनन्त रूपों में रावण हमारे सामने विद्यमान है इसलिये इन्हें समाप्त करना ही होगा 


बुध बिश्राम सकल जन रंजनि। रामकथा कलि कलुष बिभंजनि।। 

रामकथा कलि पंनग भरनी। पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी।।

रामकथा कलि कामद गाई। सुजन सजीवनि मूरि सुहाई।।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने किष्किन्धा कांड के विषय में आज क्या बताया जानने के लिये सुनें