16.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 16 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अध्यात्म -वप्रि आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 16 अक्टूबर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  444 वां सार -संक्षेप

वप्रिः =समुद्र



तुलसीदास अद्भुत द्रष्टा कवि चिन्तक विचारक मनीषी संस्कृत के विद्वान थे

वे संपूर्ण राष्ट्र के आध्यात्मिक गुरु थे 

अकबर जैसे दुष्ट कपटी छली पाखंडी आक्रांता से जूझते  और बिखरे समाज जिसमें

शैव और वैष्णव के आपसी झगड़े आम  थे 

को एक सूत्र में बांधने के लिए उन्होंने राम को माध्यम बनाया।

शिव की वन्दना अत्यधिक मनोयोग से की ताकि शैव वैष्णव एक सूत्र में बंधें 

मानस आत्मोन्नति का एक अद्वितीय उपाय है नैराश्य को दूर करने का उपाय है समस्याओं का इसमें हल मिलता है 

मानसिक साधनों के प्राचुर्य से तुलसी कहीं अटके भटके नहीं


झंझाओं में झूमते हम लोगों के लिये मजबूत टहनी के समान है यह मानस


बहुरि बंदि खल गन सतिभाएँ। जे बिनु काज दाहिनेहु बाएँ॥

पर हित हानि लाभ जिन्ह केरें। उजरें हरष बिषाद बसेरें॥1॥

हरि हर जस राकेस राहु से। पर अकाज भट सहसबाहु से॥

जे पर दोष लखहिं सहसाखी। पर हित घृत जिन्ह के मन माखी॥2॥


कहकर उन्होंने,दूसरों के हित की हानि ही जिनकी दृष्टि में लाभ है,ऐसे लोगों की भी वन्दना कर दी


जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। सो नृपु अवसि नरक अधिकारी।।

रहहु तात असि नीति बिचारी। सुनत लखनु भए ब्याकुल भारी।।


बहुत गम्भीर समय में इतना प्रभावशाली ग्रन्थ तुलसी ने लिख दिया कि कुटिया से महल तक आदर करने योग्य हो गया

इसमें हम मनोयोग से प्रवेश करें



प्रत्येक सोपान का आरम्भ संस्कृत की एक सुन्दर रचना से है जिस छन्द की आवश्यकता है वही छन्द प्र्सतुत है 

किष्किन्धा कांड में कथा व्यथा पराक्रम सहयोग संगति है यह कांड सुन्दर कांड की भूमिका है


यहां भगवान राम के नाम रूप गुण लीला धाम को दिखा दिया गया


कुन्देन्दीवरसुन्दरावतिबलौ विज्ञानधामावुभौ

शोभाढ्यौ वरधन्विनौ श्रुतिनुतौ गोविप्रवृन्दप्रियौ।

मायामानुषरूपिणौ रघुवरौ सद्धर्मवर्मौ हितौ

सीतान्वेषणतत्परौ पथिगतौ भक्तिप्रदौ तौ हि नः ॥1॥



ब्रह्माम्भोधिसमुद्भवं कलिमलप्रध्वंसनं चाव्ययं

श्रीमच्छम्भुमुखेन्दुसुन्दरवरे संशोभितं सर्वदा।

संसारामयभेषजं सुखकरं श्रीजानकीजीवनं

धन्यास्ते कृतिनः पिबन्ति सततं श्रीरामनामामृतम्‌॥2॥


जीवन कर्मों का पुंजिभूत स्वरूप है


कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।

एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥


श्री राम चलते फिरते शक्ति भक्ति संयम साधना शौर्य का उपदेश दे रहे हैं एक जगह बैठकर नहीं


स्वयं उस कार्य में रत होकर उसकी प्रेरणा दे रहे हैं